
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
तुम
कतुकै गायि ठोकौ
पहाड़ कैं .....
गर्मिन में त
"नरै" लागनेरै भै।
पहाड़
ढुँङ पाथरन 'को न हुँन
"हाड़ - मांस 'क" ले
हुनेर भये।
शहरन में
बर्ख लागैं , मगर
"बन्धा्र" देखीं
बरसन है गियीं।
ताल में
"गीत" छन
स्वीमिंग पूल में
अतराट भै।
एक
जिन्दगी मिली
उलै
"पहाड़" बणीं।
पैलीं
मैंस है जा तु .....
फिर अघिल जन्मण'कि
बात करिये।
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अगाश बँणों
यमै सूर्ज दिखौ
चमचमान ....
जंगल दिेखायै
हरिया- हरी बोट लगायै
गाड़ , गध्या्र , रौड़
और ताल बँणायै ......
कती पन्
एक छीड़ ले होलि हाँ
पचेश्वर होल्
जाँ रामगंगा, सरयू
और गोरी - काली
सब भेंटाल् ....
एक गौं ले दिखियौल्
त्योर , म्योर
कैको ले होल् ...
के फर्क पड़ौं .........
गों मैस सबै ठौर
एकनस्सै हुँनीं ......
यतु हैयी बाद
तु देखियै ....
खेतन् में
ग्यूँ - धान पौयी जाल्
बा्ड़ - खुड़न में
दाड़िम ,पुलम-अलबखर
खूब बरसी जा्ल ....
पोरुँ जाँणै
जाँ स्याव बासणोंछी
वाँ मनखिनै चौल है जालि
दोफरि माँत
कपाव में हाथ लगै बेरि
मलि गौधारुन हुँ चालै त .....
अगाश में
सूर्ज'का दगाड़
बादल ले दिखियाल्
औड़ाट-घौड़ाट होल्
बिजुलि चमकैलि
आर - पार जाँणैं
दूर डानन् में
कयी बजर ले पड़ौल्
तु
घबरायै झन ....
पहाड़न् में
चौमासै शुरुआत यसी कै हुँछि
और तब दुन्नी
हरिया - हरीं है जै
पेन्टिंग में .........
आ्ब तु लै
भली कै देखि सक्छै
पहाड़न् में जिन्दगी और
जिन्दगी में पहाड़ ले।
June 08, 11, 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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