
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
सबनलै बोट लगैयीं फल लागा्ल कै
आ्ब मैं नि खै सक्यूँ त भाग्यै बात छ।
बखत'कि त आपणी अलग चाल भै
दगा्ड़ लग्गुवै न्याँत मैं ले लाग्यै भयूँ।
जब - तबै बात तुमन के सुँणूँ पैं
मनखिन 'कि भीड़ में एकलो रयूँ मैं।
कभतै दिन - दोफरिै घाम न्है जांछ
यसी कै जिन्दगी 'क रात हुनी रुँछ।
भल समझौ रत्तै ब्याँण सूर्ज ऐ जां
मनखिय'क ख्वार फिर ले रात पड़ी भै।
कसिक कै दियूँ गौं 'क फाम न्हाँ कै
ढुँङ पाथर मैं कैं धाल लगूनै रुनीं।

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के कूँ ....
कूँण जस् के न्हाँ
के सुणूँ ....
सुणूँन जस् के न्हाँ
के देखूँ ....
देखूँण जस् ले
के न्हाँ कौ .......
ततु है बेरि ले
ज्यूँन छै ?
..... के करुँ पैं
दुन्नी
मरण ले काँ दीं
आ्स जगै दीं
जैङिणी चार
उज्याव दिखैं दीं
और
टुक में घाम जस्
पराँण अटकी रुँनीं
यसी कै .....
"अकर" बखत में ले
मनखी
मरि - मरि बेरि
दुन्नी मे
ज्यूँन रुनीं।
शब्दार्थ:
अकर -- कठिन, महंगा
May 11/12, 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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