द्योक झड़ि

कुमाऊँनी कविता-आज चार दिन मांथ द्योक झड़ि, कभै जोरौक तहौड़ कभै रिमझिम Kumauni Kavita rain on hills

-:द्योक झड़ि:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत

आज चार दिन मांथ द्योक झड़ि
कभै जोरौक तहौड़ कभै रिमझिम
कभै कौणि पाकणि जौ द्यो भौहो
आज सुरुज देबाक अतुल्य दर्शन
उ चावौ धैं कस टकटक है गेयी बोट
नाई ध्वेयी उजर उजर साफ-साफ
नान-नान फूल घा किस्म किसमाक
किड़ पिटंग लै कास उड़न लाग रैयीं
कौव सिटौव ,नाना चाड़ तनार काल
यो दुनि योयी छु उड़न किड़ परचाड़
एक दुसराक पछिन चाड़ होया मैंस
जेलै छु जतु लै छु सबनैक आलि बारि
फिर लै हम समझनु हमें छां जे छां
घाम लै न्है गो ऐगो बादलौक जुलुंग
फिर द्योक तहौड़ फिर आल घाम
एसीकै हम सिखुंल जीवनौक पाठ

पाठको उपर्युक्त पंक्तियों में मैंने कुछनये शब्द समाविष्ट किये हैं:-
१. द्योक तहौड़- जोर की बारिश
२. कौणि पाकणीं जौ द्यो- धीमी धीमी बारिश
३. बादलनौक जुलुंग- काले बादलों का झुंड,घनघोर घटा।

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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