सोमनाथ कौतिक

कुमाऊँनी कविता-सोमनाथ कौतिक, मासी बजार मां। जाणि मकैं के है गोय, पैली नजर मां। Kumauni-Poem-about-love-in-Somnath-fair

🍕सोमनाथ कौतिक🍕

रचनाकार: सुरेंद्र रावत

सोमनाथ कौतिक, मासी बजार मां। 
जाणि मकैं के है गोय, पैली नजर मां।। 
कौतिक में भीड़ छन, लाखों हजार मां। 
मासी बजार मां, हाय मासी बजार मां।।

राम गंगा पार दाज्यु, भुमिय क थान। 
भेट घाट सब चढ़ाय उनी पारी ध्यान।।
हिम्मत करि बै पुछ, के छु त्यर नाम।
जवाब यस मिल भागी, तुमुकैं के काम।।

पैली नजर मां दाज्यु, पैली नजर मां । 
दुबारा फिर मिली गे, मली बजार मां।। 
मन भरमै गोय दाज्यु, उनिक हंसण मां। 
कां लागौ पै टैम दाज्यु, मन में बसणं मां।।

के छु तुमर नौं और, को छु तुमर गौं। 
गढ़वाल मुलुक छ तो, तुमुकै मेरी सौं।। 
ना ना मैं येतीकै छु, धार पार मेरो गाँव। 
कुमाऊँ की चेली छु, मैं पाली पछ्याऊं।।
ॐसूरदा पहाड़ी, 29-09-2019
सुरेंद्र रावत, "सुरदा पहाड़ी"

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