
बुड़िनाक क्वीड़-कैंण
(लेखिका-देवकी पर्वतीया)हमार गौं में तीन बिसी है मलि उमरैकि जतुक लै स्यैणी छन सबा-सब तिसार आश्रमैकि छन। घर-गिरस्ती दगाड़ उनौर मोह भंग है गो। उं जब लै आपण में मिलनी ‘सौल-कठौल’ या ‘कौछी-भौछी’ करण लागनी। यस्सै रसिल क्वीड़ पाठकनाक् मनोरंजन हुणि पेश छन।
‘‘बचुलिकि इजा! तुमूल सुणि हालि हुनलि कि हमरि पार्वति का कन्रूा जन्म है रौ।’’
‘‘होई हो चनुवे आमा ! बेल ब्याल कुंथि कूॅण लागि रै छी। के ऽ बात नि भै हो। ब्या हई ततुक बर्सना बाद कोख खुलि गे। कै दिने च्योल लै है जाल। बचि रई चैनी। के च्याल, के चेली।’’
‘‘न हो बची इजा ! आज त मैं बड़ि आश लागि रै छ्यूॅ। धैं तै को च्योल है जां कै बेर। पैली-पेलोठौ तो बार बरस में हाथि व्यांण बुङौड़ है ठाड़ भै।’’
‘‘तै खानदान में च्योल हूंणा कठिणै छ। तैकि दिदिका चार चेहड़ी छन। तैकि महतारि तीन बैणी भैन। तैक बौज्यूकि नौ बुबु भैन। निपछिटै तैक बौज्यु है गे। पछा उनार लै चार बैंणी भैनि। पार्वती मालकोट में तैकि आम हौर सात बैणी भैन। एक भाइ भै। जनुलि, मनुलि, कमुलि, भगुलि कतुक जै नाम भै। द्वि तौ लाटि भैन। एक बौंणि भै। नाम लै सोचि-समझि बेर ‘माणि’ धरी गै। पीपल दगै ब्या करि दी मैप्वांल। शिवज्यूक गण हुनी जास उस परिवार भै तैक मालकोटियांक। जो कैज तैंकि बम्बे न्हैगे वीकि लै एक्कै चेलि छ। वीकि सासु के बड़ों दुख भै कि तो हमार घर कौं-ब्याणि का बटि ऐ छ ! (कौ एक्कै बखत ब्यांछ।) मुणि उनार भगवानैल सुणि दी हो। नान च्यालाक पछा तीन च्याल है गे। खानदानी नौं रै गे। निर्वश नि भै। भाग भल भै। वि जनम में पुन्य करि राख हुनाल। तीन नातिन कैं देखि गे छिन।’’
‘‘तुम ठीकै कूंणौछा चना आमा ! के करनी, के करतूत, के पैल जनमा पुन्य ! च्याल-चेली भागै लै हुनेर भै पै। जैक करम में जतुक लेखी भै, उतुकै हुनेर भै। यों बात पुराणि भैन जब नानतिननैल घर भरी रूनेर भै।
‘‘पारै चनुलि गुस्यांण कूनेर भैन हो ! आजकल ब्रहृम लै बदलि गोछ। के नि देखना तुम ?पैली बटी क्वे बिना बेवई रूनेर भयो ? अगर परिस्थिति वश कै कै ब्या नि है सको त प्रतिम दगै, नारयूल दगै, धाड़ दगै वीक ब्या करि संस्कार पुरकरि दिनेर भै। अणबेवई क्वे नि रूनेर भै। आज त बातै हौरी है गे। च्याल के, चेली के, मारि खूब पढ़ि-लेखि नौकरी करनी। क्वे च्याल के, चेली के, ब्या नि करन। हमार तौ देखौ शन्तुलिकि चेंलि डाक्ढ्यरयाण है बेर बिलैंत हुॅ न्हैं गे।’’
‘‘होई पै बची इजा ! हमार देखनै-देखनै कस जमान ऐ गो ? गरीब हो चाहे अमीर हो, पैंली बटी कूनेर भै परवार दरबार। कंचमंचनैल घर भरी रूनेर भै।’’
‘‘हौइ हो पै चनुवै इजा ! आब तुम समजो। तलि बाखलि बालनौक कतौण कारबार भै। कतुक चमत्कार भै ? आजा दिन देखौ, वी ऽ घर में कौ बासण लागि रईं। जौ लाग-फाङ नानतिन छन छूट देशन पन हन्याल।’’
‘‘एक हरीश’क् मुणि कारबार जस छी पै। आब देखौ सब खचबच-खजबज जे लै कूंछा। एक च्योल भै, जो पढ़ण हुणि अमेरिका गोछी। वील बांई ब्या करि हालौ। सुणीणै उ बै बसि गो। हरीश और दुल्हैणि कत्थप आसाम उज्याणि न्हैं गईं। है गे। उतांण बंग्यालाक् ढुंङ-पाथर उधारि बेर मैंस लिजांणई।’’
‘‘तती कै देखौ तौ गणेशै इजैकि ठलि जेठांण जो तसिलदराणि ज्यु भइन। ऊं रतन सुन्दरि कईनेर भैन। सांच्चौ हो चना इजा। उनार कपाल में मणि भै मणि। उनार औलाद नि भै। देराणिनाक् नानतिनन कैं उनूलै पाल-सैत। सासु-देवर-देराणी सार परवारा मली ऊं सिरताज भैंन। सारै हुकुम उनरै चलनेर भै। सार मुहल्लवाल, किरौदार, नाक्र, रस्यार सब उनन देखि डरनेर भै। जे उनूल कै दौ तहसीलदार ज्यु लै उनार बिपरीत नि जै सकनेर भै। सार कारबार उनरै हाथ में भै। कभतै रौस आई त तब रतन ज्याड़ज कूनेर भैन, ‘‘जागौ मिजाज के करंछा, जै दिन मैं मरूंलो यै घरै पट्ट है जालि। मैं रतन भयूं रतन। जै दिन म्योर जनम भयो जोशि ज्यूल कै बल, ‘‘तौ चेलि तुमार घर में रतन है रै रतन। तुमार घर उज्यालै करैलि। जै घर जालि वाॅ तौ नौ रतन वरसालि। पर एक बात जरूर छ हो नाथ पणज्यू ! तैक औलादा गिरहौ कमै जास छन।’’ सांच्च्ी हो उनरि औलाद नि भै। पै उनूल कभै औलाद हुणि डाड़ नि मारि। भतिज, भतीजी उनूलै पाल-सैंत्। भद्या, भाणज सब उनरै घर पढ़नेर भै। लोग कूनी, ‘‘जै दिन रतनौ ब्या भयो तनार सौरासियाॅ घर से भूटी भांङ, फुटी ब्याल लै नि भै। तौ एन त तनार दुल्हौं कैं तहसीलदारी मिली। फिर के छी मुणि-मुणि कै पाॅच खण्डौ घर लाग। घर में मूंग, मोत्यूॅ, सुन-चान्दी बरसि गे। और जब रतन गइन उनार दगाड़ै सब श्री न्है गे। आज उनार घर में नाम ल्हिणी, पाणि दिणी क्वे नि रै।’’
‘‘अहो बची इजा ! यो मत्र्य लोक में यसी रीत छ। याॅ धन-दौलत पै बेर मैंस अहकारी है जाॅ। और एक दिन यौस लै ऊछ जब वीक नौ ल्हिणी लै क्वे नि रूंन।’’
‘‘तै पर लै गुस्याणि ज्यू ! मैंस नाक-भाल करम करते रईं, आज लै करनी, भोल लै करते रौल। राम कैं बणबास होल। सीता कैं रावण हर लि जाल। कंस आपणि बैंणि और भिंज्यू कै कैदखाण में बन्द करौल। पाण्डवन कै ंलै बणबास होते रौल। द्रोपदीक चींर हरण होते रौल। आपण चारों तरफ देखि लियौ। कौरबनौ राज। बलात्कार, हत्य, आतंक, लूट-खसोट।’’
‘‘पलि फुकौ हो तौ क्वीड़न कै। हिटौ भितेर हिटौं। चहा बणूंनू। गव सुकि गो क्वौड़ पाथण में माचेत।’’
-देवकी पर्वतीया, लखनऊ
देवकी पर्वतीया जी द्वारा उत्तराखंडी द्विमासिक पत्रिका "कुमगढ़" मई-जून-२०२० से साभार
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