नी जा इजा!

कुमाऊँनी कविता -नी जा इजा गों गाड़ छोड़ी यां क्वे नि रै जाला  तसिकै कनै पहाड़ नाका गों सब उजड़ी जाला।Kumauni Poem about unplanned development

 नी जा इजा!

(रचनाकार: ललित सिंह सिराड़ी)

नी जा इजा गों गाड़ छोड़ी यां क्वे नि रै जाला
 तसिकै कनै पहाड़ नाका गों सब उजड़ी जाला।
जेसीबी मजदूर खै हाली जै लागीं पहाड़
ठुल मैस नानन खैजाणंई खाणींनैकि बहार
इन्जीनियर सड़क खै ल्हीनी, डाक्टर मरीज
ठुल भाग नेता छन खांणी नि भरीन भकार।।

नि जा इजा गों गाड़ छोड़ी.............. 
मोंलनैल दुकान खै हालीं खै सिनेमा हौल
माफियात मुफत खोरै भै पुलिसाक सौंकार
टीटीनैल रेल खै हैछौ, धर्म खाणों देश
कस पिरीम छी तु मैं खानी, खतम छु परिवेश।।

नि जा इजा गों गाड़ छोड़ी..............
जंगलादीन जंगल खांई डबल वालनैल गौं गाड़
खेत खलिाहान बांज पड़ी छन चुल सबै निमाण
पेट पुठ सब एक्कै है गयीं गरीब छन तिषाण
कां कुड़ि लगूं कां ख्वर छुपूं कां लगूं दिसाण।।

नि जा इजा गों गाड़ छोड़ी..............
पलायन पलायन कूल कूनै निपटी पहाड़
एनजीओल लै फैलै हाछो कालो कारोबार
दिखावनैल रिश्त खैया ब्या काजनैकि रीत
डीजे बजै भंगड़ा नाचनी हराण पहाड़ि गीत..........

नि जा इजा गों गाड़ छोड़ी..............
भ्रष्टाचारैल देशै खैहै कां तक क्वे भाजलो
कसिक चलैं रिक्शा टैम्पू कसिक त्वे राजौलो
 भरौस कर तरक्की होली यांलै हृवोल सुधार
बड़ि उम्मीद में वोट देछी, क्वे करोल उद्धार!?
नि जा इजा गों गाड़ छोड़ी यां क्वे नि रै जाला
तसिकै कनै पहाड़ नाका गों सब उजड़ी जाला।।

ललित सिंह सिराड़ी, पूर्व प्रधानाचार्य

ललित सिंह सिराड़ी जी द्वारा उत्तराखंडी द्विमासिक पत्रिका "कुमगढ़" मई-जून-२०२० से साभार

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