
“आखरी रस्त“
(रचनाकार: उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम")
सुप्रभात दगड़ियो
लियो प्रस्तुत छू आजैकि कुमांयूनी कविता “आखरी रस्त“
लियो प्रस्तुत छू आजैकि कुमांयूनी कविता “आखरी रस्त“
पत्त नै य अलबेर के हगो, हमार इष्ट भगबान रिशै रईं।
भली भलि रोपाई करिछी, खैतन में धान लै बुशै गईं।
धान लै बुशै गईं, पत्त नै कसि हमर दुरभाग जागि गो।
ग्यूं फ़सल में लै अलबेर काउलिनी, रोग लागिगो।
समय असमयकि बर्ख हरैछी, हम सब लै भितरी गई।
फाम कसी कर सकछिया, मडुवाक बालाड़ लै छितरी गैंई।
अलबेरै आम में पौव एगो, आम लै नि लागाल।
आरू बोट में लै बान लाग गो, आरु लै नि फलाल।
हाड़ तोड़ यदू मेहनत कर बेर लै, अब के पकूल चुल्ह पन।
गौंक हालत यदू ख़राब छू, यां अब बकौल लै नि फुलन।
गध्यार में एक त्वाप पांणि न्हैं, कसी सिंचूं आपुंण खेत।
बंजर हमार सब खेत हगईं, उमें दिखींणे रेत ही रेत।
भुखि पेट कसी बसर हूँ, यां गौं में हालत हगे हमरि खस्त।
लागू घर कुणि गौं अब छुटै जाल, पलायनै छू आखरी रस्त।

जै जै हमार पहाड़! जै जै उत्तरांचल!
उमेश त्रिपाठी (काका गुमनाम) द्वारा रचित एंव प्रसारित।

उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" 06-06-2019
श्री उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" जी की फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पोस्ट से साभार
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