
'विनती'
रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
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सरस्वती हे माई!
म्यार् मन में
भरी दे उल्लास।
शारद माता हे!
विनती करौं य दास।।
भाव विशुद्ध हो
वाणी अमिरत
शीतल बगो य साँस।
प्रेम कि गंग
बगै दे मनम में
शान्ति की सुवास।।
मति में परहित
प्रीत जगै दे
स्वारथ करि दे नाश।।
परम सुकीर्ति
दिश-दिश फैलो
धरती और आकाश।।
हनैं रओ मन
क्षण क्षण भर में
अमरता क् आभास।।
शारद माता हे !
विनती करौं य दास।।

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मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 25-01-2016
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