गडेरी - कुमाऊँनी कविता

कुमाऊँनी कविता-गडेरिन की पहाड़न में हूं, यदू जै जै कार।  दाल में खितो, साग खाओ, मने लियो त्यार।  Kumaoni Poem about importance of Gaderi root

 “गडेरी“
(रचनाकार: उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम")

सुप्रभात दगड़ियो
आज प्रस्तुत छू कुमायूंनी कविता “गडेरी“

गडेरिन की पहाड़न में हूं, यदू जै जै कार।
दाल में खितो, साग खाओ, मने लियो त्यार।
मनै लियो त्यार, यमै भांग जै खित दियो।
जुबान चटकार मार दैलि, कटौर भर पियो।

ओ इजा यदु मुलैम साग, य रव्टां दगड़ चैं।
मुख में यकू धरण है पैलि, मुखै में गलि जैं।
हम भाय उत्तराखंड वासी, धन भाय हमार भाग।
बश हमारै उत्तराखंड में मिलूं, य गडेरिक साग।


जै जै हमार पहाड़! जै जै उत्तरांचल!
उमेश त्रिपाठी (काका गुमनाम) द्वारा रचित एंव प्रसारित
उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" 12-10-2018
श्री उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" जी की फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पोस्ट से साभार

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