
ड्रैगन त्यर काव मूंख हैजौ
रचनाकार: दामोदर जोशी 'देवांशु'
ड्रैगन त्यर काव मूंख हैजौ, कभै पनपियै झन
आंखक झाड़ जौ काटणौछै, कभै तिष्टियै झन।
जै लाग रौछ कुकुर जस. बकणकै त्वैकें धान
शान्तिल आपण ठौरम नै, लुकि रॉन आपण खान।
किलै आय हिमाल है तलि, धमकछी देखै-देखै गन
ठगि खाणौ छै सारि दुणी कैं, मोटै रौछ खै हमरै धन।
लपकॅछ स्यापकि जसि जिबडि, किलै माति रौ त्यर मन
न तिड़ दुश्मणा उपन जस. आब भौत इतरायै झन।
रणचंडी जा च्याल हमारा, तडि में आब त रयै झन।
पापि पाक कैं ताऽव में धरछै, नेपाल के दिछै त मुन
सबूक चुन लगूंन में रय, मानवताक तु छै घुन।
खो-खाँ हैरै कसि रावणा, जाग हड़पणकि धुन
एक दिन जरुर आल दुश्मणा, गवण पडौल त्वैक दुन।
छोड़ दुश्मणा जाग हमरि स्वाट खालै जो नडालै मिन
वोड़ मणी लै खजबजाल, नचै दयल त्यार गिन।
सेकि-साकि बाकि झन करिय, मिटै यूंल त्यार चिन
अहंकार मुनई टोर कॉलो, गिण ल्हे आपणा दिन।
फौरी रौछै भङव जस, कच्येलि दयूंल त्यर फन
ड्रैगन त्यर काव मूंख हैजौ, कभै पनपियै झन।।
- दामोदर जोशी ‘देवांशु', June 24, 2020

श्री दामोदर जोशी ‘देवांशु' कुमाऊँनी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार, कुमगढ़ पत्रिका के संपादक हैं
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