
पाव्
(पाव् अर्थात पारी या बारी)
लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'
पहाडन में एक कहावत प्रचलित छ - तैक पाव् पुरि रौ या तनर भली के पाव् पुरि गो। यैक मतलब भै कि साख खतम हैगे. प्रतिष्ठा कम हैगे। वर्तमान में मैलि यैक दुसर मतलब निकालौ कि हमर पाव् ले पुरि गो। लेकिन यो पाव् मान प्रतिष्ठा वाल नहाति यो पाव् छ - गोरु बाकारनक पाव्, पैली बटी लगभग हर गौं घरन में पशुधन बहुतायत में हूंछी. ठाकुर लोग तो खेती किसानी में उत्तम भाये तब और बिरादरी ले खेती पर आश्रित भै और खेती क पूरक पशु ले भाय। या यो कै सकछा कि खेती और पशुपालन एक दुसाराक पूरक भै।
जैक पास जदुक समृद्ध खेति पाति होलि उनार यां गोरु भैंस बल्द ले हुनेर भै, खेती क लिजी खाद चैनेर भै तो ज्यादे पशु पाली जाल तो खाद ले ज्यादे मिलैलि और ज्यादा खेती होली तो भरपूर चारा हुनेर भै। आब यो सन्तुलन गडबडै गो. कति खेति करण कम करी तो पशु ले कम हैगे। तो उ टैम पर पुर गांव वाल गोरु बाछा भैंस इकठ्ठ करिबेर जंगव ल्हिजानेर भाय और हर परिवार कि जंगव में जानवर चरूणकि ड्यूटि लाहनेर भै। जानवर चरूणकि यो ड्यूटि या बारि पाव् कई जानेर भै। हर परिवारक बारी बारी'क साथ पाव् उनेर भै तो आजकल यो परम्परा लगभग खतम हैगे तो पाव् पुरि गे आजकल।
जब मैं सात आठ में पढन हुनेल्यू तब मैलि ग्वाल जाण शुरू कर हालछी। हमर गौं बहुत ठुल ऊै तो हमार यां चार पांच हुनेर भाय। एक पाव् हमर मुहल्ल ग्वालुखा क हुनेर भै और एक पाव तलि गौं क हुनेर भै। तलि गौं मों ज्यादे पशु भै तो वां द्वि परिवर कि बारि लागनेर भै, एक पाव ताल माल नाघर क हुनेर भै।एक पाव धम्यौड'क और एक पाव हरिजन बस्ती क भै। एक पाव चौड वालनक भै, यो सब हमर गांव क मुहल्ल भै। पाव चरूण बखत सब लोगन कें यो ध्यान धरण पडनेर भै कि एक दुसर मुहल्लाक क पशु आपस में नै मिलौ। नतर जानवर आपस में लड पडनेर भै और पडही इलाक में जानवरनैकि लडाई हुण पर जानवर घायल हुणक खतर भै।
हमर मुहल्ल मेॆ लगभग बारह परिवार छी और लगभग तीस पैतीस जानवर चरूण लिजाण पडछी। सबनकि बारि नियत भै, कबै कैकैणी जरूरी काम पड गे पाव चरूण नि जै सकाल तो पाव् बदलनेर भाय और कबै एकलै बोरियत हूं कैबेर पाव् साझ ले करनेर भाय। मतलब मेर पाव में तुम दगड करला तुमर पाव में मी दगड करुल। पहाड में महिला लोग बहुत कर्मठ भै पैली बटी तो जब क्वे महिला पाव् चरूण जाली तो दिनभर के न के काम पाव चरूणा दगाड ले करछी, लाकाड काटाल, घास काटाल, सुतर काटाल या पिरूल इकठ्ठ करछी।
हमार मुहल्ल में एक पारै कि आम छी, मी वीक दगाड पाव् साझ करनेर भयूं। आम ड्यूटि कि पक्क भै, आम दहाड में कितैलि चाहा पत्ती दूध और टपुक धर लूनेर भै। पाणि और आग जंगल में भये, हम एक द्वि बार चाहा बणूनेर भयां। जंगल में चाहा बहुत सवाद लागछी, आमा तब खाज् (चावल) ले लूनेर भै, सीजनल फल, आडू नासपाति पुलम वगैरह ले हम ल्हिजानेर भयां। लासण क लूण, धणी खुश्याणी लूण काकड वगैरह ले ल्हिजानेर भयां। कुल मिलैबेर जदिन हमर पाव् हुनेर भै उदिन जंगल में मंगल भै। चौमास में खूब छ्वा फुटि रूनेर भाय, कति हम खाल बणूनेर भयां, कति धार लगूनेर भयां, कति नहर जसि बणाय तसिके ब्यांवन लागिबेर टैम काटिनेर भै।
आमा दगाड पाव् जांण में एक फैद और भै। हमार जंगल बटी सानिउड्यार जांणी एक घोडी सडक भै, तब हमार स्टेशन बिगुल बटी सानीउड्यार कमस्यारि भदैं साईड जाणी बटाव् उ बाटै जानेर भाय। ब्याल बखताक टैम पर आम् घोडी सडकाक किनार गोरु बाछा लिजानेर भै, हिटन बटावन छैं कुशल बात पुछलि, उनन फसकन में लगालि। तब मैंस ले बुडी छ कैबेर के फल फूल कबै मिठाई टुकुड दि दिनेर भाय। आम बात बातन में कूनेर भै - ईजा खाप सुकि रै के नि लैरये झ्वालन।
बस आमा दगाड मेर ले खावै है जानेर भै। मैलि एक चीज तब नोट करी कि जानवर बहुत समझदार हुनन। हम जो जानवर कैं नाम ल्हिबेर धात लगून तो वी हमर तरफ पलट जानेर भै..। ब्याल बखत सूर्य देखिबेर टैम क अन्ताज लगाय और जानवर कैं धात लगै - ले घर-घर-घर...। बस जानवर घर उज्याण दौड लगै दिनेर भाय।
विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 11-08-2021
M-9411371839
फोटो सोर्स: गूगल
0 टिप्पणियाँ