जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

 कुमाऊँनी भाषा में शेर-शायरी, ज्ञान पंत जी द्वारा  Kumauni Sher-Shayari by Gyan Pant, Kumaoni Shayari

जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

रचनाकार: ज्ञान पंत

कभै
मेरि ले
सुँणनां .....
धैं, कस हुँछीं।
तुम
उनेर छौ
तबै .....
" झड़ " पड़ि रयीं।
................
बोट
खूब फयि रौ
ऐला फ्यार् ले .....
आ्ब
तुम नि ऊँनां त
मैं , के करुँ पैं ।
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पहाड़
खाल्ली जि अतरों
पोथा........
अत्ती है गियी त
फिर
समायीन न्हाँ ।
.....................
रीस
ऐ पड़ी त
फिर कै बाबु ताकत ......
लटि - पटि ल्ही बेरि
पहाड़ ले
"फाव " हालि दिनेर भै ।
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शहरन में
" रोपै " लगाला त
खेत
बंजर हुनेरै भै ।
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तु के कौ
आब्बै इत्ती आलै....
फिर झन कयै
कि , क्वे चान न्हाँ क ........
त्वील जि ब्वे राखौ
उयी त काट्लै
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पोथा ......
दिन जा्ँण में
देर जि लागै......
पोरुवौं नान्तिन
कब बा्ब बणीं......
के पत्त चलछै?
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चेलि
सौरास हुँ
बा्ट लागी ......
के पत्त चलछै?
तोरयाँ झुकि पड़ी
लगिल
सुकि बेरि लकड़ी ग्यो.......
के पत्त चलछै?
..............................................
हव बान-बानै
नस्यूड़
टुटि जाँ जब त......
शिबौ! बल्द'क पुछौड़
निमोरि बेरि
के होल कै हरौछै.......
यै वीलि
ज्वान दिनन् कैं
भली कै समायि रा्ख .....
को जाँणों
भोल
योयी सब
आजि काम आवौं।
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शब्दार्थ:- 
धैं - देखते हैं,
झड़ पड़ना - झमाझम बरसात,
अत्ती - बहुत ज्यादा,
समायीन - संभलता,
फाव - कूद कर आत्महत्या,
रौपै - पौध लगाना (यहाँ पय भाव रुपया है)
इत्ती - यहीं,
पोरुवाँ नान्तिन - कल के लड़के,
तोरयाँ - तरोई,
लगिल - बेल,
झुकि पड़ि - लदी हुई,
हल बान बानै - हल चलाते चलाते,
नस्यूड़ - मिट्टी में धँसा ,हल का नुकीला भाग,
समायि - संभाल कर

...... ज्ञान पंत, June 9 & 28, 2018
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार

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