
शहरों में दिवाई और बम पटाखा
रचियता: राजेंद्र सिंह भंडारी
शहरी समाजाक सब कानून तोड़ि दी हमूल,
ना ना कौनें भौत बम पटाक फोड़ि दी हमूल।
जहर छी भौत उसीकै पैली बै शहरी हाव में,
कुटि-कुटि हाव में और जहर जोड़ि दी हमूल।।
जे के लै शिक्षा दिनि शिक्षक पर्यावरणविद,
उनरि देई शिक्षाकि बाजू लै मरोड़ि दी हमूल।
हरी रंग पिंगव हगो डाव झाड़ियों'क शहर में,
और लै जानलेवा रंग इमें निचोड़ि दी हमूल।।
करि दी आंख कमजोर नांतिन ऊं जवानोंक,
बुड़ बाड़ियों कमजोर आंख फोड़ि दी हमूल।
हैरान हलाल इसरो डीआरडीओ लै देखि भे,
यास रॉकेट बोतलम अटकै छोड़ि दी हमूल।।
छोड़ि हैछी जो नानौल काम य कुछ साल बै,
मोड़नै मोड़नै बाट उनर लै मोड़ि दी हमूल।
उसीकै लोग कम अस्वस्थ नी रौन शहरों में,
पटाक मतलब बीमार मेंस रंघोड़ि दी हमूल।।
बैठि रौनी पिशाच जास हाय जो पढ़ी लिखी,
इसिकै छाति अनपड़ो करि चौड़ि दी हमूल।
ऊं दुष्टों नाश करो जो उगौनी पटाक बारूद,
पटाक जलै तो उनरि खेति गोड़ि दी हमूल।।
राजेंद्र सिंह भंडारी, 7-11-2021
फोटो सोर्स: गूगल
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