
वाँ लै लाईव चलि रौ बल...
लेखिका: रेखा उप्रेती
बेलि ब्याल भौत्ते दिनु बाद आमा'क दर्शन भईँ कुँछा।
मील कौ "किले आमा, इतू दिन कां छी?"
"हा'य, सराद लागि राछी पै...स्वैणा में उणौ'क सबुत कां हुँछी", आ'म आपणि नई धोतिक पल्ल ख्वार में खित बेर कूंण लागि।
"त्यर सराद त एक्क दिन करि हुनौल काकज्यूल..."
"दै.... एक्क दिन लैं कां!! खाल्लि ...द्वि घन्ट लै पुर नि लाग्नेर भाय...पण्डित क कद्दू जा'ग अपोइनमेंट भाय"
"पै तु कसी बिजी हई भई?"
आम बतूण लागि कि, आ'ब स्वरग-नरग में लै लाईव प्रसारण'कि भलि व्यवस्था हैगै। धरती में जैक ले सराद नान्तिन करनी ऊ कं पुर प्रसारण देखणक सुबिधा छू।
"इजा, औरे कौतिक लागि रूँ कौ... हम सब बुड़-बाड़ि दगड़ बैठि बेर देखनु। खूब हस्यौव लागि रैं..."
"आमा, हस्यौव किलै है रैं? नान्तिन त पुरै विधि-बिधान'ल लागि रुनि," मीं पुछि बैठ्यूँ।
"बकौल फुलि रौ उ बिधि-बिधान'क ख्वार...
जस बबाल फेड़े हरैं, आब के बतुँ। य फ्यार त आय न्यारै सीन देखि हमूल... बामण'कि हकाहाक त सरादूँ में हुनेरि भै, पै यौ साल त गजबै है गोय। एक बामण'ल द्वी घरुँ में जबेर सात घरुँ'क सराद लिबटै दीं।"
आब मिकं हैरानी जै है गेयि। "तस कसि कर पै बामण'ल?"
"एक घर में रत्तै-रत्तै पूजि गोय बामण, वाँ के तैयारि नि हई भै। वील आपण मोबाईल में 'लाइव' लगै बेर दुसर बुड़'क सराद करै दे...। फिर लै मणि देर है गेइ त एक और घर'क बुड़ निबटै दे...आब यौ घर'क सराद कर बे दुसर घर पुज त वाँ बटि लै चार जजमानुं'क काम-तमाम...।
वाँ सरग-नरगा'क बुड़-बाड़ि बटि-बाटि बेर बैठि रुनेर भाय कि आब भल-भल पातैई चाख'ण हुँ मिलैलि कै...कां'क बड़! कां'क पुरि!...खाल्ली खीर खबेर इथा-उथां 'लाइव' में गुण-मुण करि दि...। है गेयि सराद... खाण-पिण त आपण जस, सब्बन'क सुगर ज 'हाई' है गे बल...।"
रेखा उप्रेती,

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