
कुमाऊँनी में श्रीमद्भगवतगीता अर्थानुवाद्
चौदहऊं अध्याय - श्लोक (१० बटि १८ तक)
रजस्तमश्चाभिभूय सत्वं भवति भारत। रजः सत्वं तमश्चैव तमः सत्वं रजस्तथा।।१०।। सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते। ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्वमित्युत।।११।। लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा। रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।।१२।। कुमाऊँनी:हे अर्जुन! कभ्भीं-कभ्भीं सतोगुण- रजोगुण और तमोगुण पार् भारि है जां , कभ्भीं रजोगुण-सत और थम पार् त् कभ्भीं तमोगुण- रज और तम पार् भारि है जां। यौ ई प्रकारैल् इन गुणन् में आपसी खींचाताणी लागियै रैं। सतोगुण क् अनुभव तब्बै है सकूं जब शरीरक् सब्बै दरौजूं में ज्ञानक् उज्यावैल् उदंकार हौवौ। जब रजोगुण में बढ़त हैं त् आसक्ति, सकाम कर्मूं में रुचि और बेलगाम इच्छा और लालसा यस् लक्ष्मी पैद् हुंनी।
(अर्थात् सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण इनूमैंलै खैंचातांणी चलते रैं, कभ्भीं क्वे ज्यादे त् कभ्भीं क्वे कम लै हुनैं रूनीं। सतोगुणैकि पछ्याण तब है सकीं जब दैहिक् सब दरौज में ज्ञानक् भरपूर उज्याव हौवौ और जब रजोगुण बढ़त बणां त् हरेक चीज में आसक्ति, सकाम कर्मूं कि बेलगाम इच्छा और लालसा मन में पैद् हुंनी।)
हिन्दी= हे भरतपुत्र! कभी-कभी सतोगुण- रजोगुण और तमोगुण को परास्त कर प्रधान बन जाता है, तो कभी रजोगुण- सत और तम को परास्त कर देता है और कभी ऐसा होता है कि तमोगुण- सत और रज को परास्त कर देता है। इस प्रकार श्रेष्ठता के लिये प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। सतोगुण की अभिव्यक्ति को तभी अनुभव किया जा सकता है, जब शरीर के सारे द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं । जब रजोगुण की वृद्धि हो जाती है तो अत्यधिक आसक्ति, सकाम कर्म तथा अनियंत्रित इच्छा और लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं।
अप्रकाशोऽअप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च।
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन।।१३।।
यदा सत्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते।।१४।।
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते।।१५।।
कुमाऊँनी:
तमोगुणैंकि वृद्धि हुंण पार् बुद्धि अन्यारपट्ट है जैं और जड़ता, प्रमाद तथा मोह पैद् हूं। जब क्वे सतोगुण में मरूं त् ऊ ऋषि-मुनियों क् लोकूं कैं प्राप्त हूं और जो रजोगुण में मरूं, ऊ सकाम कर्म करणियां दगड़ जनम ल्यूं और जो तमोगुण में मरूं, ऊ पशुयोनि कैं प्राप्त करूं।
(अर्थात् सत, रज, तम इन गुणन् में जब देहधारी मृत्यु कैं प्राप्त करूं तो वीक् जनम् क्रमशः विद्वान् लोगनांक् बीच, सकाम कर्म वलांक् बीच और पशुयोनि में हूं। यौ निश्चित ज्याणौ।)
हिन्दी= जब तमोगुण में वृद्धि होती है, तो अंधकार, जड़ता, प्रमाद और मोह का प्राकट्य होता है। जब कोई सतोगुण में मरता है, तो उसे महर्षियों के उच्चतर लोकों की प्राप्ति होती है। जब कोई रजोगुण में मरता है, तो वह सकाम कर्मियों के बीच जन्म ग्रहण करता है, और जो तमोगुण में मरता है , तो वह पशुयोनि धारण करता है।कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्।
रजस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्।। १६।।
सत्वासञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च।
प्रमादमोहो तमसो भवतोऽज्ञानमेव च।।१७।।
उर्ध्वं गछन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठति राजसाः
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।१८।।
(अर्थात् सतोगुण में स्थित मनखी यौ लोक में भौतिक सुख भोगूं और अन्त में धीरे-धीरे उच्च लोकों हैं जां, जबकि रजोगुण में स्थित मनखी यौ ई धरतिलोक में रे जां और जो मनखि तमोगुण में ई स्थित रूं ऊ त् नरकगामी हूँ यानि पाताल लोकों में निवास करूं।)
हिन्दी= पुण्य कर्म का फल शुद्ध होता है और सात्विक कहलाता है। लेकिन रजोगुण में सम्पन्न कर्म का फल दुःख होता है और तमोगुण में किये गये कर्म मूर्खता में प्रतिफलित होते हैं । सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है और तमोगुण से प्रमाद, अज्ञान और मोह उत्पन्न होते हैं। सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं, रजोगुणी इसी पृथ्वी लोक में रह जाते हैं और जो तमोगुण में स्थित हैं वे नीचे नर्क लोकों को जाते हैं।
जै श्रीकृष्ण
(सर्वाधिकार सुरक्षित @ हीराबल्लभ पाठक)
🌹🌿⚘🌺⚘🌹🌿
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर, रामनगर

श्री हीरा बल्लभ पाठक जी की फेसबुक वॉल से साभार
0 टिप्पणियाँ