
बकरौ मैल - कुमाऊँनी लेख
लगभग १९५५-६० तक वैद्य लोगूंकि भौत्तै चौल् भै, एक बखत् हमर् पड़ोस में एक मैंस बीमार भौय त् वैद्य ज्यु बलाई गाय्। उनूल् बिमारैकि नाड़ि देखि और कौय कि अग्यार लगंण (उपवास) दिण पड़ल् और बारूं दिन बकरौ मैल् दिण पड़ोल्। कुछ दवाई पुड़ी दी बेर् वैद्य ज्यु न्है गाय्।
मी ऊ बखत दस-बार वर्षक् हुनौल् त् मेरि बुद्धि द्वी जाग पार् अटकी गे, कि लगंण और बकर् मैल् क्ये हुनौल् ? खैर लगंण क् बार में त् पत्त चलि गोय कि भुख धरणौं पर बकरौ मैल् क्वे लै दगड़ियों कैं पत्त नि भौय। मिल् अपंण मनैल् यस् विचार करौं कूंछा कि बकरैकैं ध्वे बेर वीक् जो मैल् निकवल् वी बकरौ मैल् हुनौल्, पर बिमार कैं यतुक गन्द पांणि पीवै बेर फैद् कसिक् हौल्? यौ सोचि-सोचि मेरि निनैं भाजि गे कूंछा।
आब् मी ऊ बारूं दिनौक् इन्तजार में रोज ऊं बिमारक् घर बैठी रूनेर भौय। एक-द्वी कनैं अग्यार दिन पुरी गाय हो। आब बारूं दिन मील् उनर् घर बैठक जमै दे। करीब दसेक् बाजे टैमम् वैद्य ज्यु ऐ गाय्, उनूल् फिरि बिमारकि नाड़ि देखि और कौय कि ल्याओ बकरौ मैल्। मेरि उत्सुकता और बड़ि गे कूंछा, जरा देरम् एक मैंस बाकर ल्हीबैर् आंगण में ऐ गोय और एक मैंस खुकुरि ल्हीबैर् ठाड़ है रौय, खुकुरि वाल् मैंसैल् एक्कै खट्टाकम् बकरे गर्दन अलग करि दी और एक दुहर् मैसैल् ऊ बकरै गर्दन बटी जो खून निकलौ ऊ एक पर्यात् में इकट्ठ करौ और वैद्य ज्युक् सामणी धरि दी वैद्य ज्यूल् फटाफट द्वी-तीन कटोरि खून ऊ बिमार कैं पिवै दे।
क्येनामकूनीं तब समझ में आ कि बकरौ मैल् क्ये हूँ कै बेर्। किलैकि ऊ बखत् में आजै चारी ब्लड बैंक या खून चड़णैकि सुविधा त् भयी नै, और यस् करतब करि बेर् खून चड़ायी जानेर् भौय।
जै देवभूमि
(सर्वाधिकार सुरक्षित @ हीराबल्लभ पाठक)
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स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर, रामनगर

श्री हीरा बल्लभ पाठक जी की फेसबुक वॉल से साभार
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