
क्वीड़ - कुमाऊँनी वार्तालाप
लेखिका - नीमा पाठक
(कुमाऊँनी भाषा एक बहुत ही समृद्ध भाषा है जिसका अपना भाषा कौशल है। हर वाक्य में मुहावरों का प्रयोग आम बात है। वहां के लोग इन मुहावरों और तरह तरह की उपमाओं का प्रयोग अपनी भाषा को सुगम और सरस बनाने के लिए बड़ी कुशलता से करते हैं। कई शब्द ऐसे हैं जिनका अपना कोई अर्थ नहीं होता पर ये कई तरह के भावों को दर्शाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, जैसे पै, दै, क्याप। भाषा में स्पष्टता ऐसी कि सुनने वाले के सामने उसका चित्र उभर आता है, किसी प्रकार के स्पष्टीकरण की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। उदाहरण के लिए दो महिलाओं के वार्तालाप को प्रस्तुत कर रही हूं।)
"ओ दिज्यु! बेई रात का छिया हो?"
पार गौ ब्या में जै रोछी।
रात में एकल डर नि लागी?
'छिलुक जै रांख' जून आई भई क्ये डर।
ब्या कैक छी?
पनुव नान च्यलक।
बड़ी जल्दी करी ब्या लिजी, के बात?
बूबू ले कौ बल 'म्यार धार में दिन' एगी कभतै लै के है सकूं, नाती ब्या देख जानू।
पै, बली.. (उदासी का भाव)
कसी छु ब्योली?
भली बान छू गोरी फनार, थाई जे मुख सैंण कपाव, नौव जास आंख और बटु जास होंठ।
पै..( आश्चर्य) जेवर के के आ?
पत ना, एक 'पिरुव जस तिनौड़' नथ पैर राख छी, नान नान 'बटन जास' कान में लै छी।
पै..., के बात नै सुक्यारी रूण चैनी फिर बण जाल।
दैज के के आ?
एक 'बटुई जस गागर' देखी और एक खाट।
पै…. च्यल के काम करूं?
'गलेदार जस घुम रू' कंपनी में मार्केटिंग करु बल।
ठुली ब्वारी कसी छू देखण चाण ?
'ठंगार जैसी लंबी, ढोन्या कपाव, ढडू जास आंख और रंग उल्ट तव जस'।
पै.... काम धंध करछा घर पन?
ना हो ' ज्ञांज' भई ।
और पनुव स्यैनी कसी है रै आब?
उसी भई 'बाकरी जस्सी' दौड़नी रू।
और पिठ्या के लागौ तुमुकुं
दा, एक चाव जसी धोती।
के बात नै कैकु दे दिया।
आपुण ले बताओ हाल चाल?
दा.., के हुनी च्यल भीतेर पड़ रो 'गौव जस बल्द', चेली मोबाइल पर लाग रे।
जानु आब काम सब धरिए छू।"
नीमा पाठक
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