दिगौ ला - कुमाऊँनी कविता

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दिगौ ला

कुमाऊँनी  कविता
 रचनाकार: डॉ. आनंदी जोशी

मातारिक हातौक र्वाटाक गास, 
वी में धरी घ्यूकि बास।।
गौताक डुबुक मदिराक जौल। 
जेठयक उम कातिकाक सिरौल।।

खान खान् जैलै पेट भरी जाँछी पर मन निंभरी छी,
दिगौ ला, योस मानींछ जाणि आजि लै मुख में छ। 

दस हाताक ज्यौड़ाले कमर कसि बेर।
मुट्ठि भरि पराँण हतकायि में धरि बेर।।
नरबलि खानेर काठाक टुक में। 
सर्ग पूर्जी फल्याटयक रूख में।।

धुंङरयाई दातुलिलै पालू काटनेर उ पुतई जसि,
दिगौला; योस मानींछ जॉणि आजिलै रूख में छ।

पुसीक पालौ जेटौक घाम।
जंगवाक घा-लाकौड़ गाड़-खेतौक काम।।
सलाक बुकेड़ जास चिर पड़ी हात-खुट।
खाणि-पिणि आपणी जसि पर बुतिक चुट।।

छिलुकाक उज्याव में उखई जातरि करनेर उ दुखी पराँण,
दिगौला, योस मानींछ जाणि आजि ले दुखें में छ।

(न्यू सेरा, पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) निवासी डॉ. आनंदी जोशी ज्यू रिटायर शिक्षक छन, मो.-9411517434 यों कुमाउनी भाषा में एक भल कहानीकार, कवयित्री रूप में जाणी जानी।  कुमाउनी भाषा कैं अघिल बढूण में ठुल भूमिका निभूनई) 
उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 05 वर्ष 02 अंक 5-6 सितम्बर-अक्टूबर 2015

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