
बाज्यू देस में
रचनाकार: रेखा उप्रेती
कसिक रुन हुनाल
बाज्यू
देस में
एकलैs एकल!
इज
न परवार
क्वे दगड़ी न यार
सुख-दुखा
ककैं सुनूँण हुनाल
बाज्यू
देस में
एकलैs एकल!
मुनव पीड़ भई
क्वे नि दिन हुनल
एक घुटुक चहा
जर-बुखार में
को दिन हुनल
दवा
आपण दाव-भात
आफी बनूँण हुनाल
बाज्यू
देस में
एकलैs एकल!
होलि दीवालि
घुगुती त्यार
चेली पासिणि
च्यल क जनमबार
मनै-मन
मनूँण हुनाल
बाज्यू
देस में
एकलैs एकल!
कुड़िक पाख छा हूँ
बैणिक ब्या हूँ
म्यर लिजि
फरोक,चूड़ि, चुटिल ल्या हूँ
डबल कमून हुनाल
बाज्यू
देस में
एकलैs एकल!
खै नि खै
आपण पेट काटि
खुटां-खुट हिट
बस में लटकि
हर म्हैंण
मनियोडर हूँणि
पैंस बचून हुनाल
बाज्यू
देस में
एकलैs एकल!
उनेर भाय
साल में एक्क बार
ल्युनेर भाय
मिठ्ठै, गुड़ -चाण
सब्बन हूँ
के न के उपहार
लौट बेर
आपणी फाटि थगुलि
कसिक सिणन हुनाल
बाज्यू
देस में
एकलैs एकल!
रेखा उप्रेती,

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