
जाम
(रचनाकार: उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम")
सुप्रभात दगड़ियो।
जाम लगैबेर मस्त है रईं,
कुंणईं हगे शाम।
पहाड़ कूं लै नश्श हैगो,
वील लै लगे हालौ जाम।
कुंणईं हगे शाम।
पहाड़ कूं लै नश्श हैगो,
वील लै लगे हालौ जाम।
वील लै लगें हालौ जाम,
मोटरांक पहिय थांमीं गईं।
मोटरांक पहिय थांमीं गईं।
स्कूटर कार टैक्सी टम्पू
जां लै पुजीं, वैं जामी गईं।
नशाबंदी करो हो पहाड़पन,
ना पियो और ना पिलाओ।
पहाड़न कूं नि करो धें बर्बाद,
हर जाग बटि जाम हटाओ।
उमेश त्रिपाठी ( काका गुमनाम ) की रचना ।

उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" १९-६-१८
श्री उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" जी की पोस्ट फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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