कुमाऊँनी किस्सा अकबर बीरबल - नीदेकि सजा, Kumaoni Bhasha mein Kissa Akbar Birbal, Kumaoni Kahani

नीदेकि सजा

कुमाऊँनी किस्सा अकबर बीरबल
लेखक: नारायण सिंह मेहरा

‘बीरबल के हो, महावत आ या निएै?’’ अकबरल् पूछा, ‘नै हजूर ! आजि नि पुजि। मैल आपण कोरोना हाथिक् लिजि एक नई महावतक् बन्दोबस्त करि हाला।  बाँकि सारे खांण-पिंणक समान, टैंट सहित शिकार करनक समानौंक बन्दोबस्त करि हाला। सब आदिम लै तैयार छन। बस चलनेकि तैयारी छू।’ बीरबल जवाब दे।
 
तबै हाॅफते हुए बीरबलक् महावत सिराज उपस्थित  हैगा।  हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाना- हजूर ! देरिक लिजि क्षमा चानू। रातभर उन्त रनक् कारण रत्तै आँख लागि गे।  भविष्य में यसी गलती नि होलि।’ 

अबकर उथें भौत नाराज छी। किलैकि उनूकें शिकार  हुणि जान में डेढ़ घन्टकि देरी हैगे।  अब तक उनूकें जगंलक् सरहद में पूजि जान चैंछी।  अकबरल आपण मन्त्री कैं आदेश दे- ‘य बहानेबाज, लापरवाह महावतक् सजा यई छू कि तैकें तीन दिन तक केई  हालत में नि सितन दी जाये’ औरअकबरक् काफिला शिकार हुणि प्रस्थान करिगा।
 
घनघोर जंगल में शिकार तू भौत छी। घर  अति चौकन्न छी और दूरैबै भाजि जाॅछी। द्वि दिन-रात में केवल एक खरगोश और एक मुर्ग हाथ पड़ा। जैकें उनूल रात कें कैम्प मेंई पकै खै ले। भाग्यवश तिसार दिन रत्तैब्यांण   बीरबल भागते हुए एक हिरण ठसकै दे। अकबर कें संतोष हो कि चलो अन्त में कुछ त् हाथ आ।

अघिन दिन दरबार में न्याय सभा छी। समस्त मंत्रीगण अधिकारी, प्रजा व आपण-आपण समस्याओं कें लिबेर आयी। न्याय पानाक् लिजि अनेकों लोग उपस्थित छी।  अकबर भौते न्यायप्रिय बादशाह छी। लोगों के उनर न्याय में भारि विश्वास छी, पर अकबर न्याय सभा में नि एै  सक्। सभाक् समय समाप्त हुन पर प्रधान मन्त्रिल सबू थें  क्षमा माॅगते हुए अघिल दिन औनक आदेश दे।

अघिन दिन दरबार खचा-खच भरीन छी। अकबर  समय पर उपस्थित ह्वे गयीं। दरबार प्रारम्भ होते ही लोगोंक्  समस्याओंक् समाधान हुण फैगा। यतुक मैई अकबर कें उ  महावतकि याद एै। जैक विलम्ब में औन पर तीन दिन तक  नि सितनक् आदेश बादशाहल् दैछी। उ महावत दरबार में  उपस्थित छी। पूछन पर मंत्रिल जवाब दे-‘हजूर !  सजायाफ्ता ल आपणि सजा पुरि करि हाली पर, वील तिहरि रात आदुक मिनटेकि झपकी लगै ली। येक लिजि के आज्ञा छू?’

सुनिबेर अकबर कें गुस्स आ, वील तुरन्त आदेश ठोकि दे कि तू शैतान कणि दोबारा तीन तक नि सितनेकि सजा दी जान।  आज्ञाक पालन हुण चैं।

दरबार में बीरबल लै मौजूद छी। उ उठा और तालि बजाते हुए अकबरेकि न्याय प्रियताक् सराहना करते हुए बुलाण- ‘हजूर ! मैंलै आपूंक द्वारा दी सजाक् समर्थन करनू। य अपराधि कैं यसी सजा दिन चैं। महाराज ! बहान करना कि ईज भौते बिमार छू। विक देख-रेख और दवा-पाणिक् कारण रातभर जागन पड़ा, यई कारण रत्तैब्याण नीदेकि झपकी एैगे। हजूर ! यदि बेलि य बहानेबाज कें न्याय सभा में यई फैसल हुन्त यकें ए एक रातेकि नीदक मौक नि मिल सकछी और लगातार छः दिनक् सजा भोगते रौन।’

अकबर बुलाणा- ‘होई बीरबल मैं बेलि राज-दरबार में नि एै सक्। किलैंकि द्विदिन-रात लगातार जंगल में भटकते कारण मैं भौत थकि गछी।  जैक कारण में दोपहर तक सितये  रै..........। ओह ! बीरबल..........तुमरि चतुराईपूर्ण बात मेरि समझ में एैगे। आँखिर तुमूल मेरि गलती पकड़ि ली। मैं क्षमा चानू। असल में यसि समस्या हरएककि जीवन में कभै न कभै औनै छू। त् महावत विचार लै कोई समस्या में पड़ि गहुनियल। अपराध सबूॅक बराबर हूॅ, य में नान-ठुल नि देखि जाँ।  त् महावत कैं सजा बै मुक्त करि जाँ।  तीन दिनेकि नीद नि निकालनेकि एवज में तैकें खजा्न बै तीस असर्फी दि दी जावो और बीरबल आपकें भौत-भौत धन्यवाद छूं कि आपूल मिकैं गलत न्याय करन है बचा दें।

बीरबल हाथ जोड़ते हुए मुस्कुरैगा।

नारायण सिंह मेहरा, हल्द्वानी
-मो0 9761120666
उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 21 वर्ष 07 अंक 1-2 मई-जून 2020