
-:नौल, घट और भुमि-थान:-
(रचनाकार: अरुण प्रभा पंत)
सड़क बणि मैंस गोंपन बै जानैं राय
पाणि नल टंकी आय तो नौल नि राय
बजारौक पिस्यु, बिजुलिक चक्की नैल
खत्मकर ह्याल घट्यावनौ क कारबार
कत्तु किस्स काथ घटाक तीर भाय
घटैक घौराट, घट्यावैक हिस्स बान
प्यारैक काथ भल मैंस घट्याव रैग्याय
काथै काथ में भाऊ,शुणूल मैंआब तुकं
आजौक जमानौक गैस्ट हाउस रुणी भयै
नौल, घट, भुमि थानाक मंदिर हमार
सबै है गेयीं आब उधर, है गेयी खत्म
मुणी दिनाक लिजि सही तु आछै यां
परसब जाण समझ ल्हे आपण पहाड़
न आब पैलियाक जा धुर जंगल, इजर
न रै ग्याय काफल किलमोढं, हिंसाल
पर तु, कैं लै रौ पर यो सब समझ ल्हे
नंतर के बतालै आपण नानतिनन कं
सिख ल्हे समझ ल्हेआपण पहाड़ कं
जां रूणौ छै वांलै तेरि पछ्याण योयी भै
आपण असलियत जाण समझ ल्हे
पोथा भाऊ,भुली बैंणा दीदी काखी
मैं तुमौर गौंग्वैंठ,भुमिथान,बाड़ झाड़
भिड़ आंगण खुटकूण,माव भराण पाल
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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