आखिर मेरि गलती के छी

कुमाऊँनी कविता - आखिर मेरि गलती के छी, गाय की ब्यथा, poem in kumaoni language, describing the how cow is used by man for his benefit only


आखिर मेरि गलती के छी

रचनाकार: चम्पा पान्डे
🙏🙏🙏🙏

मील तमर के बीगाड़ौ,
जो मीकैं इतू ठुल सजा दीण छा तुम।

तुमुल जत्कैं बादि
उत्कणि रौय मी
तुमूल जतू दी
उतूकैं खायि मी,
जे दी से मजी मान गोय मी
फिर लै म्यौर दिबै इतू नराज किलै हैरछा तुम,
आखिर मेरि गलती के छी
जो मीकैं इतू ठुल सजा दिण छा तुम।

मी तमर घर में रौय
घर तमरौ शुद्ध हौय
म्यौर गूभर (गोबर) भ्यार-भितेर
तमरै कतू काम आयि
म्यौर सड़ी और ताजि गौंत (गौमूत्र) लै
नौक भौल काम में उपयोग करनी हया तुम ,
आखिर मेरि गलती के छी
जो मीकैं इतू ठुल सजा दिण छा तुम।

पुज-पाठ, गौदान
यास कतू काम आनू मी तमौर
दूध दिबे नान ठूल सब
नना कैं लै बूतै जानू मी तमौर
दै, दूध, छां घ्यौं सब खैबे अघै जांछा तुम ,
आखिर मेरि गलती के छी
जो मीकैं इतू ठुल सजा दिण छा तुम।

आज मी अब बूड़ है गौय
दूध लै नी दिण लै रौय
तब तुम मीकैं चिताण रछा
खालि खाणि काव जौस
अब मी मजबूर छीं
तुमुकैं के लै नी दी सकन
पर गूबर और गौंत तो
म्यौर मरण मरण तक काम में ल्हैला तुम,
आखिर मेरि गलती के छी
जो मीकैं इतू ठुल सजा दिण छा तुम।

मीकैं घा मणि कम दी दिया
चा्ट पिट के झन दिया
जब गूस्स आलौ द्वि अड़ि (डन्डे)
पूढम भलि भलि मा्र जाया
पर मी अपौस जात कैं
इसी कालक गीजम
जाणि बुझि बे किलै बादि जांणछा तुम ,
आखिर मेरि गलती के छी
जो मीकैं इतू ठुल सजा दिण छा तुम।

मीकैं आपण चिन्ता नी छू
मीकैं तमेरि चिन्ता फिकर
तुम म्यार गुसैं हया
म्यौर फर्ज तुमुकैं करण सतर्क
यौ अजापक (पाप) सजा भौ हैं कसी सारला (सह) तुम
आखिर मेरि गलती के छी
जो मीकैं इतू ठुल सजा दिण छा तुम -२....।। 
....... 🙏🙏||
धन्यवाद
*चम्पा *पान्डे*, 25-07-2020

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