
देवभूमि
ताराचन्द्र त्रिपाठी
हम लोग हिमालय वासी छाँ। याँ हरी भरीे जंगल छन स्वच्छ परिवेश छ। लू नीं चलैनि। छोइनक और गाड़ गध्यारनक पाणि स्वच्छ छ। गंग और वीक दगडु सब गाड़.गध्यार हमारे डान-कानन बटि निकलनी। याँ गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, हम किलै बदरीनाथ, और लै कतुक तीर्थ छन। कैलास.मानसरोवरोक असल बाट लै योइ छ। उसी कूँछा त पार्वती क मैतै नै शिव ज्यू कि तपैकि भूमि लै योई भै।
महाभारताक शान्तिपर्व में तो यै कन परलोक कै राखौ। यस लोक जो सारि दुनि है बिलकुल अलग छ। पवित्र छ शान्त छै। याँ जैक प्राण छुटनी वीकँ परमपद मिलँऽ। यो सर्वगुणवान, पवित्र, मंगल करनेर यस लोक छ जैकि द्याप्त लै कामना करनी।
उसिक देख छा तो देसिनाक हिसाबैल यो दुसरै लोक छ। जब तक जनसंख्या कम छी, लोगनैकि जरूरत आदि लै कमै छी। अकालाक दिनन में लै जंगलन बटि कन्द.मूल.फलनैल भरण पोषण संभव छी। धुरानाक् बुग्यालन में और डान काननाक दमसैणन में मस्त घा पात मिलि जाँछी। भैर वालनाक लिजी यो बहुतै दुर्गम भै। फिरि कभैं क्वे फौज फर्र ल्हि बेर ऐ लै गयो तो आपुँक बचूणाकि लिजी उड्यार और पाहाड़नाक् खोल लै कम नि भै।
उ जमान में जब ऊण.जाणाक साधन नि छिया, आजीविकाक साधन लै बहुत कम छिया, मैदानी भागन में भयंकर अकाल पड़न छिया, कभैं हैज, कभैं प्लेग, कभैं चेचक जसि महामारी फैलन छी, आये दिन देशाक् भैर बटी या भितर लै अनेक आक्रमण हूनै रांैछिया, लोग जाग.जाग बटि या ऐ बेर बसीं। भाग्यवादी और चुपचाप खोरि चैड़ि करि बेर हिटणि लोगनाक् लिजि संकट लै कम छियो। कोलाहल और कलह लै कमै छियो। आक्रमण हुण पर कै लै पहाड़ाक उड्यार में शरण ल्ही जै सकन्छि। मैदानी भागन में रूनेर लोगन कँ यो सब सुलभ नी भयो। यै का कारण उनन कँ यो अंचल स्वर्ग जसो लागन्छियो।
फिरि लोगनैकि धार्मिक आस्था परै जनैरि आजीविका चलैन्छि उनूल आपण इलाकाक खास.खास धार्मिक आकर्षण वालि जागानोक अनेक पुराणन में महात्म्य वर्णन करण आरंभ करि दे। यो महात्म्य वर्णन आजाक जमानोक विज्ञापनक पुराण रूप भै।
यो ’देवभूमि’ लै उनैरि देन छ। आजाक जमान में जनैरि आजीविका पर्यटन पर छ, उँ यै कँ भुनूण में पिछ्याड़ि न्हेंतन। जब हिमाचल प्रदेशाक पर्यटन व्यवसायिनैल यै देवभूमि विशेषणोक मस्त लाभ उठा त उत्तराखंडाक पर्यटन व्यवसायिन कँ लागौ कि जब बिना विशिष्ट तीर्थनाकै हिमाचल प्रदेश ’देवभूमि’ शब्दोक ऐतुक व्यापारिक लाभ उठूणोछ त पिछाड़ि रूँ। हमार पास त जम्मै तीर्थ छन। केदारनाथ छ, बदरीनाथ छ, गंगोत्री छ, यमुनोत्री छ और लै कतुपै तीर्थ छन।
आब के छि देवभूमिक सामणि उत्तराखंड नाम लै ठंड पणण लाग। कुछनैल त फिरि लै उत्तराखंड शब्दोक लिहाज करौ, पर औरन लै त उत्तराखंड शब्द कणि गोल कर दे। देखो त कतुक संस्थानाक नाम में उत्तराख्ंाडोक नाम ल्हिणी लै नि रै। जस ’देवभूमि उद्योग.व्यापार मंडल’, ’देवभूमि सांस्कृतिक कला केन्द्र’, ’ होटल देवभूमि’, ’देवभूमि पर्यटन’, देवभूमि यो, देवभूमि उ। यै देवभूमि दगै न मालूम कतुकुप संगठन पनपण लागि रयीं। कामैल बात नी बणनै त धैं नामैलै बणि जौ।
दुनि प्रगति की दौड़ में काँ पहुँचिगे, पर हम आपणि देवभूमि कँ ल्हिबेर बैठि रै गयाँ। गति में और प्रगति में बहुत पिछ्याड़ि। हिमालय लै बुड़न लाग। लोग पेटाक लिजि देस हूँ भाजण लाग। ’पहाड़ी’ शब्दोक अर्थै भानमजू है गोय। हम मार खानै राय और आपण घौन में देवभूमिक मल्लम लगूनै राय।
साँचि कूँछा त यो ’देवभूमि’ आम जनता कँ उल्लू बणूणाक लिजि मस्त ढेपु टाक वाल वर्ग द्वारा उनोर ध्यान मूल समस्याओं पर बै हटूणोक एक प्रयासाक अलावा के न्हें। योई समझो कि अरे तुम त देव भूमिक निवासी छा तुमन कँ बाँकि के चैं।
आज लै पंजाब, हरियाणा, गुजरात और दक्षिणाक सब्बै प्रदेश प्रगति की दौड़ में विश्वस्तर का नजदीक छन। देशाक विभाजनाक कारण आपण घर बटि खदैड़ि गई फटेहाल स्थिति में शरण ल्हिणाक निजी आई लोगनैल हमैरि दलदली और बीमार तराई कँ फिरि चैरासी लाखैकि माल या अन्न और वैभवाक भंडार
में बदलि दे, पर हम वाईं देवभूमि में रयाँ।
आजादी है पैलिक जै अंचल में केवल शार्की कई जानेर गोरखियै सुरापान करन छिया वाँ पुर्रै अंचल सुरामय है गोछ। लोग बाग आपण सार्रै सुरम्य स्थलन कँ बेचि बेर लै सुरा पिण में पिछाड़ि नि राय। सबूँ है बेरे प्रभावशाली मानि जानेर ग्वाल्ल द्याप्ताक चितई स्थित मंदिराक द्वार पर लटकि सुरा व्यवसायीक विशाल घंटाक सामणि ग्वाल्ल द्याप्तैकि लै के औकाद नि रै।
उसिक साँचि कूँछा त हो,यो देवभूमि भै। सैणिनाक बल पर टिकी खेति, मनीआर्डर पर टिकी भरणपोषण, होटलन में और खोमचन में चहा घुटक और बिड़ीक फूँक दगै लगातार फसकन पर फसक और राजनीति, खन्यारन् में अध्यापक विहीन विद्यालय, न डाक्टर और न दवाइ पाणि फिर लै नाम अस्पताल, आपण जल, जंगल, जमीन और पितरूँकि थात कँ नीलाम करण हुँ लै तैयार जननायक, आपण मैतै में गू-मूतैकि गंग बड़न हुँ मजबूर गंगा, थ्वाड़.थ्वाड़ कै तामि खोरि जा हूनै जाणी परभत, भूकैल बेहाल है बेर घरन में घुसणई बाग, हर साल हजारूँ लोगनैकि बलि ल्हिणी सड़क, उजड़ी गौं, शुकनै जाणि धार और नौल, कंगाल होते जाणि हिमालय और वी कँ बेचि बेर मालामाल हुणि नेता, अफसर और माफिया - हमैरि ’देवभूमि’।
आज लै यै तेर जिल्लन वाल नानू नान प्रदेश में साठ हजार सौनकादि ऋषि (एन.जी.ओ.) जनताक करोड़ों रुपैं हजम करि बेर केवल पुराण (कागजी कार्यवाही) लेखणईं। आज लै हम भारतीय त बहुतै ठुलि बात भै, उत्तराखंडी लै नि है सकाँ। अल्मोड़िया, सोर्याल, पौड़्याल जसी मध्ययुगीन पछ्याण कणि आपण सर्वस्व मानि बेर बैठि छाँ। आजि लै हमार बुद्धिजीवियन कँ आपण गढ़ तक सीमित थोकदार या गढ़पति सम्राट अशोक है बेर लै महान लागँऽ।
तब यो लागँ कि वास्तव में हम देवभूमिक निवासी छाँ। शरीरैल संसार में और दिमागैल स्वर्गवासी। किलै कि असली देवभूमि त स्वर्ग छ और स्वर्ग वास्तविकता न्हैंति एक स्वैण मात्र छ।
उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 9 वर्ष 07 अंक 3-4 जुलाई-अगस्त 2020
0 टिप्पणियाँ