दिदीयो! कां, छा तुम?

कुमाऊँनी कविता-दिदीयो! कां, छा तुम? Kumaoni Poem about tough life of hill region, Kumaoni Kavita, Pahad ki nari ka kathin jivan

'दिदीयो! कां, छा तुम?'

रचनाकार: दिनेश जोशी

'दिदीयो! कां छा, तुम
को, भ्योवन जै रौछा
घा काटण हुणि, झन जया,
ऊ बज्याणि उज्याण बांज
काटण हुणि,
नतरि पतरौल धरि ल्यहौल गिरवी
तुमौर ज्यौड़ दातुल कणि,
भजै द्यौल तुमू कणि जंगव बै, नड़किये बेर।

कैं बांजैकि टुकि बै, छुटि रौला
तलि भीमैं, हड्डी पसली टुटि जालि,
बरमांड फुट रौल,
जानैल हाथ ध्वे बैठला आपुणि तुम।
बैणियो! चनुलि भैंस, गोरू बाछ,
थोरि,बल्दनाक ल्हीजी किलै
करछा ततुक काव।

को जनम जांले, तसियै गाड़-भिड़
बण उड्यार, भ्योवनाक
दगड़ू बणिये रौला?
दाद-भै तुमार, द्वि आंखर पढ़ि
लेखि बेर परदेश में सैप बणि गई,
जनन कणि आपुणि पुठि
कानि में बैठै बेर, दूर इस्कूल पुजै
ऊंछिया तुम नानछिना!
बौज्यूल, को गाड़-गाड़, गध्यार,
मुलुक फाट बैवे दे तुमन क्, जाणि,
कत्तु सालन तक तुमैरि क्वे खबर पातै नि ऐ।

कां छा, दिदि-बैंणियो!
हमून लै नि ल्हि कत्तु सालन
बै,तुमैरि खोज खबर।
हमन कणि मुनि हालौ यो शहरनैकि स्वार्थी जिन्दगील,
हमैरि भलि मत्ती ल्हीजी उचैण धरिया।

 -----------------@ दिनेश जोशी* 04-08-2020
 

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