बड़ो आनन्द ऊंछी

कुमाऊँनी भाषा की कविता - बड़ो आनन्द ऊंछी, Hypothetical poem in Kumauni language, Kumaoni Bhasha ki kavita

बड़ो आनन्द ऊंछी

(स्व. बंशीधर पाठक "जिज्ञासु")

कालि रात स्येति हुनी त बड़ो आनन्द ऊंछी। 
कौपि किताबनै खेति हुनी त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

क्यार उगणी फौण्टीन हुनी त बड़ो आनन्द ऊंछी। 
क. पाणिल जगणी लाल्टीन हनी त बडो आनन्द ऊंछी।।

स्याई का हुना गाड़-गध्यारा त बड़ो आनन्द ऊंछी।
बुद्धि में पड़िये रून छारा त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

भिदुडुवा फैशन हुना त बड़ो आनन्द ऊंछी।
बागन में पिलसन हुना त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

पात-पतेल लगड़ हुना त बड़ो आनन्द ऊंछी।
रबड़ का लै बगड़ हना त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

गरीब सब सेठ हुना त बड़ो आनन्द ऊंछी।
सबै रङ कमेट हना त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

घरै आपण इस्कूल हुनो त बड़ो आनन्द ऊंछी।
मेजा जाग इस्टूल हूनो त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

रीस मास्टरनै फीस हुनी त बड़ो आनन्द ऊंछी।
सरसुती चार-सौ-बीस हुनी त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

के पास हुणी सब फेल हुना त बडो आनन्द ऊंछी।
दफ्तर सब झेल हना त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

कानून सब गड़बड़ हुना त बड़ो आनन्द ऊंछी।
सबै कवि 'अनपढ़' हुना त बड़ो आनन्द ऊंछी।।

-वंशीधर पाठक 'जिज्ञासु, लखनऊ
 
उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 9 वर्ष 07 अंक 3-4 जुलाई-अगस्त 2020

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