
"के भुलौ के भुलौ मन माँ"
रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
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कुमाऊँनी गीत
गरूड़ै की लाल पुल माँ,
के भुलौ के भुलौ मन माँ।।
कमल क् ताल भागी
कमल का ताल।
जै जै हो शीतला माई
जै भैरव काल।।
गोमती किनार बसिया
जै जै हो केदारा।
चक्रवर्तेश्वर देवा
गरूड़-गंगा की धारा।।
तुरेश्वर कपिलेश्वर
जै हो दीपा माई।
बुरसौलैकि गाड़ मजि
तुमरी दिवाई।।
जै हो बैजनाथ धाम
पार्वती मैया।।
जै भ्रामरी नन्दा तेरी
जै कोट की माई।।
घर घर बिराजमान
मन में समाई।।
गरूड़ै की . . . . . .
बैजनाथ धाम मेंजि
पार्वती बिराजी।
शम्भू छना बर बणिया।
हौंण रैछ सगाई।।
सबै देव गण दगाड़ा
दिण रींना बधाई।।
सत्य नारायण स्वामी
और कमला माता।
सबौं परि कृपा तुमरी
दुख सब भजाई।।
झड़ुगोल गागरीगोल
गरूड़ा का गोलू
ईष्ट देव गोलुज्यू की तो
घर घर बाखई।
जै हो बली बुबुज्यु तुमरि
लाटू देव जै हो।।
दिव्येश्वरी मैया हमरि
नैंनन बसाई।
गरूड़ै की... .
गगरचू माई का थान
जै जै मयड़ी बौथॉण।
आरती कि थाइ सजी रै
कुकुड़माई का थान।।
कौसिक की तपस्थली
काटई रूद्रधारी।
अंगीरा ॠषि क् जाप थाप
जै शिव अंग्यारी।।
पांडुथल में पांडवों कि
सैंण सैंण खई।
कामदेव इन्द्रैलै पठ्याया
पैली यैं ई।।
गरूड़ै की.........
छिन छिना में भैटी छना
कापड़ ग्वल देवा।
नृसिंह अवतारी देवा
अंग्यारी महादेवा।।
पिनाथ बिराजमान
पिनाकेश्वर देवा।
फूल वेद नैवैद्य लै छ
तुम सबौंकि सेवा।।
भैरव भूमिया देव
गड़देवी का थाँन।
ऐड़ी बाण चाण बाण
जोगि लोगों क् ध्यान।।
गरूड़ै की लाल पुल माँ
के भुलौ के भुलौ मन माँ।।

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मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 28-01-2016
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