चंदकालीन कुमाऊँ - फल्दाकोट और धनियांकोट परगने

कुमाऊँ का इतिहास-चंद वंश के समय में कुमाऊँ के फल्दाकोट और धनियांकोट परगने -History of Kumaun-Faldakot and Dhaniyakot Pargana, Kumaon ka Itihas, History of Kumaun

कुमाऊँ के चंदकालीन परगने-फल्दाकोट और धनियांकोट

(कुमाऊँ के परगने- चंद राजाओं के शासन काल में)
"कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे के अनुसार
 

फल्दाकोट

सरहद- पूर्व तरफ़ काकड़ीघाट में कोशीनदी, उत्तर में स्याईदेवी का डाँडा । पश्चिम को ताड़ीखेत और दक्षिण में सल्ट पट्टी।
पट्टियाँ- कंडारखुवा, धुराफाट, चौगों, मल्लीडोटी और कोश्यां ।
पर्वत- चोटियाँ-शेर का डाँडा, हरपाली का डाँडा, मुस्योली का डाँडा, मुल्या की नौ का डाँडा, भुलादेई का डाँडा, कमपुर का डाँडा और ताडीखेत (पुराने काग़ज़ों में ताड़ाखेत लिखा है) आदि ऊँचे पर्वत है।
नदियाँ- कोशी, कुजगाड़, और सिरौत।
देवता- काँकड़ेश्वर, महारुद्र, विल्वेश्वर महादेव हैं।  झुला देवी है।  ताड़ीखेत में गोरिल हैं।  भुजाण में भैरव हैं।  कलिविष्ट ग्रामदेवता भी हैं।

इस परगने में फल्दाकोट नाम का बड़ा क़िला था, अब वीरान है।  इसी से सारा परगना फल्दाकोट कहलाता है। इस परगने में पहले कत्यूरी राजाओ का राज था।  बाद जब कत्यूरियों का साम्राज्य छिन्न भिन्न हुआ, तो उन्हीं के खानदान में से खाती-जाति का राजा हुआ।  खाती सूर्यवंशी कहे जाते हैं।  उनकी संतान अब भी हैं।  खाती-वंश को पछाड़कर चंदराजाओं ने फल्दाकोट को अपने राज्य में मिला लिया।  फल्दाकोटवाले बड़ी वीरता से लड़े थे। प्रत्येक गाँव के लोग लड़ने को आये थे, पर चंदों की शिक्षित सेना के सामने उनकी एक न चली।
कुमाऊँ का इतिहास-चंद वंश के समय में कुमाऊँ के फल्दाकोट और धनियांकोट परगने -History of Kumaun-Faldakot and Dhaniyakot Pargana, Kumaon ka Itihas, History of Kumaun
माँ झूला देवी मंदिर 

इस प्रांत के लोग अच्छे व्यापारी हैं।  बोझ उटाने तथा लड़ने में भी वीर होते हैं।  पहाड़ में ठंडी जगह के आदमी खूब मज़बूत होते है।

वोदे- इस परगने में एक किस्म के जानवर होते हैं, जो वोदे कहलाते हैं।  ये मछली मारकर जीते हैं।  १०-२०-२५ वोदे मिलकर मछली मारते हैं।  एक जगह जमा करते और मनुष्यों की तरह आपस में बाँटते हैं।  कभीकभी लोग छिपे रहते हैं और इनकी मारी मछलियां को छीन लेते हैं।  अगर वोदों ने मछलियों पर पेशाब कर दी, तो वे फौरन् सड़ जाती हैं।  ऐसा पंडित रुद्रदत्त पंतजी ने लिखा है।
इस परगने में कुछ लोग कालो कुमाऊँ के और कुछ यहीं के हैं । कोशी के किनारे बालू धोने से सोना मिलता है।

धनियांकोट

यह परगना कोटौली, छखाता, कोटा और फल्दाकोट के बीच में है।  
पट्टियाँ-धनियांकोट, उचाकोट और च्यूनीचौथान हैं।  
नदियाँ- कोशी, खैरना, गमगाड़ और घटगाड़ आदि। 
पर्वत- गागर, बुधलाकोट और लोहाली आदि।

कोट यानी किले हैं- इस छोटे परगने में कई कोट यानी किले हैं।  तल्लाकोट, मल्लाकोट, माजकोट और बुधलाकोट।  इन कोटों में इन दिनों  गाँव वैसे हैं।   धनियाँकोट पट्टी में बज्योली, उपनियाँ ढुंगा, टटाइल, खेरना उचाकोट पट्टी में हरचनौली, कलुवागाड़ प्रभृति कुल छः लोहे की खानें हैं। 

खाती-राजा के समय में धनियां कोट भी फल्दाकोट राज्य में शामिल था।  जब फल्दाकोट खाती-राजा से छीना गया, तो धनियांकोट परगना अलग किया गया।
कुमाऊँ का इतिहास-चंद वंश के समय में कुमाऊँ के फल्दाकोट और धनियांकोट परगने -History of Kumaun-Faldakot and Dhaniyakot Pargana, Kumaon ka Itihas, History of Kumaun

इस परगने में गोरिल देवता की पूजा बहुत होती है।  यह परगना कहीं ठंडा, कहीं गरम है।  आम और खजूर के पेड़ भी यहाँ हैं।  बाँझ, कटौंज और सुरई के वृक्ष भी हैं।

पंडित रुद्रदत्त पंतजी लिखते हैं:
"गागर में बौंस (जंगली कुत्ते) होते थे।  अब कम हैं।  इनका १०-१५ का गिरोह चलता है।  रात को जब चलते हैं, तो पीछे का 'बौंस' आगे हो जाता है।  इस प्रकार रात को सोते-सोते ये कुत्ते ४-६ कोस जगह तय कर जाते हैं।  कहते हैं, 'बौंस' भी वोदों की तरह जब किसी जानवर को मारते हैं, तो मांस बराबर बाँट लेते हैं।"


श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, 
अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा, 
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com
वेबसाइट - www.almorabookdepot.com

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