
कुमाऊँनी गीत -"हुक धैं रे"
रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
हुक धैं रे! मणि हुक कुकूरा! हुक धैं रे मणि हुक।
खाल्लि खाँणौं काम एक्कै. काम-धाँम् क् सुख।
कुकूरा! हुक धैं र मणि हुक।।
जंगली सुअँरौं क् दंगल
बाँज् भिड़ा लै खनि जाँणौ।
और बानरौं क् दल चाधैं
दिन दिन दुगुण बढ़नैं जाँणौं।।
मुठि भरी का धान रैगीं
ठुल भकारा टुक।
कुकूरा! हुक धैं रे मणि हुक।।
स्यावौं लै देख भलि भैट्यै रै रात भरि वाह वाह कौंनैं।
जिन्दगी कैं सार पड़ि गे
दौंनौं का दगाड़ रौंनैं।।
हौंनैं-हौंनैं के है गेछ
बूँन बटि पिरूक।
कुकूरा! हुक धैं रे मणि हुक।।
मर्ज्यात की धूँणीं हमूँलै
भल्लिक्यै टैंण्यै है छ।
जिन्दगी कदुग अकरि
य नश्शौं लै बड़ै हैछ।।
खुजल कसिक? कसिक खुजल? य मारगाँठी मुरुक?
कुकूरा! हुक धैं रे मणि हुक।।
कैकि डर फैरै बता धैं
वौल्ट-पौल्ट सब टोड़ि है।
प्याँज लासँण धणिया
स्यारी पन लगौंण छोड़ी है।
हौव की भड़भड़ हराँणैं
डिलारै की ठुक ठुक।।
कुकूरा! हुक धैं रे मणि हुक।।
आब् मैंसौं लै बैल-बाखड़ा
गोरु बह्यौंड़ै कि ठाँनि है छ।
नाँजा ल्वाप और घा का टुसमुस बागुड़ौं लै मॉनि हैछ।।
कहाँणा का टुपरा खाली
तौं टाँनौं परि नि लुक।
कुकूरा! हुक धैं रे मणि हुक।।
तू युधिष्ठिर कैं दिखौंणियाँ
छै बाटो स्वर्ग क्।
और अन्यारो कणि फाँनणीं निभौंणीं लूँण क् फर्ज क।।
आँनि-पाँनीं कर धैं आज
नि कर धुक धुक।
कुकूरा! हुक धैं रे मणि हुक।।

................................................................
मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 25-01-2016
0 टिप्पणियाँ