
हाई मेरी मधुली ईजा
रचनाकार: राजू पाण्डेय
कम्भे ठंडो पानी, कम्भे गर्म त्वौ में पड़े झवाँ
कम्भे सौरास स्वर्ग लागो, कम्भे यो पड्यू में कवाँ
कम्भे बोलना पटानी ना, कम्भे कतुक चूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप।
कम्भे देबुता की सूलि, कम्भे झपक सिन्नो ढांक
कम्भे हर बात में हसी, कम्भे ऊचो एकदम नाक
कम्भे ह्यून आगा अंगेठी, कम्भे जेठे दफोरी धूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप।
कम्भे धीरज में पहाड़, कम्भे चुमासे गाड़
कम्भे तीखा कांडा, कम्भे कुँली हरि झाड़
कम्भे होशियारी सागर, कम्भे अँगाना वाली कूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप।
कम्भे मंदिरे बत्ती, कभ्भे भडकी बने आग
कम्भे लसपस खीर, कम्भे तितो करेलो साग
कम्भे दसेरी आम, कम्भे निछबै खट्टो चूक
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप।
कम्भे रंगीली चंगीली, कम्भे मुख सुजायो भै
कम्भे प्यारा आखर कती, कम्भे मुख जमायो दै
कम्भे जींस टॉप, कम्भे "राजू" द्यु हाथे की झूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप।

शब्दार्थ:
त्वौ - त्वा
झवाँ – गर्म त्वै में पानी डालने पर आने वाली आवाज
कवाँ - कहाँ
चूप - चुप्पी
देबुता की सूलि - देवता के द्वारा जिससे झाडा लगाया जाता है
सिन्नो ढांक - बहुत चुभने वाली एक झाड़ी
कांडा - कांटा
चुमासे गाड़ - बरसाती नदी
कुँली - कोमल
हरि- हरी
झाड़ - घास
भैंगाना – मेढक
कूप - कुंवा
दै - दही
झूप – घूघट
~राजू पाण्डेय, 05-01-2020

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