पहाड़ैकि पीड़

कुमाऊँनी कविता-छोडि दी माटिकि माया नि सुणी पुकार। अपण पितर कुड़ी कै गया अन्यार। Kumauni Poem about life of alone old couples in hills

पहाड़ैकि पीड़
रचनाकार: चन्दन रावत

उत्तराखंड के अनेकों गांव वीरान पड़े हैं 
कुछ ऐसे गांव भी हैं 
जहां एक या दो बूढ़े लोग रह रहे हैं 
यह उन्हीं की पीड़ा है

उड़ै गय पोथीला खाली रैगो घोला
घुघुति कैलै निजाणि त्येरी मामताक मोला।
बघतैकि मार छ या कैक फिट्कारा।
हैगो बदरंग म्यर रंगीलो पहाडा।।

बांज पड़ि स्यरां पारि को लगाल हिकौवा।
को बुतौल को गोडोल को बहाल हौवा।
स्यरां में सुवर बौई ग्ध्यरां में बागा
पखांमैं बानरां दांग कस फुटा भागा
हसीया मोती बल्दुक नी बाजना निगरा।।

रत्ब्याण जिठणिक जानौर रिटौछि
दयोराण पाणि गागरि छलकाने ल्याछि।
गोरु भैंस प्यवै हणी खरीक दौड़छि।
घस्यारि सब घा काटें हैं दातुलि पैहेंछि।
अब गाज्यो काटणे कि निछु मारा मार।।

अन्यार पड़ी है जानी चुणमन बाखई।
खम खम खांसनी क्वे घर बुढव बुढई।
टोप मारी पड़ी रैनी चाखक कुणुमा।
क्वे नि आन भैटेहै य खोइ क भिड़मा।
चौथरम निपड़न अब हैंसी खितकार।।

पाकिया हिसालु गुन आफि झडि जानी।
रसिलो काफल डाई पारि सुकि जानी।
बेडु की डाई उज्याणी क्वे लै नि चहान।
बटै की आमैं कि डाई कै क्वे नि घन्तरान।
गों में नानतिन निछैं को चोरल ककडा।

बुढ़व पराणि आसि लागि बाट चानि।
एकै छु फ़िकर अब कैकणी बताणी।
जाणि कब उडै जैल हमरा पराण।
को ड्यानि सजै बेर पुजाल तिथाण।
को खोलल य घरक ढकिया दुहारा।

छोडि दी माटिकि माया नि सुणी पुकार।
अपण पितर कुड़ी कै गया अन्यार।

चन्दन रावत जी की फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पर पोस्ट से साभार
फोटो सोर्स गूगल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ