हमरि पछ्याण

कुमाऊँनी कविता-गोरू गोठ द्याप्तों थान, यौ ई हुंछी हमरि पछ्याण। भबरी रौयूं परदेस में, इज-बाबू इकुलि परांण। Kumaoni Poem, our identity as Kumauni native

हमरि पछ्याण
रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक

गोरू गोठ द्याप्तों थान
यौ ई हुंछी हमरि पछ्याण।
भबरी रौयूं परदेस में
कसिक् हौल् हमर् कल्याण।
द्वी डबलूं खातिर गौं छोड़
इज-बाबू इकुलि परांण।

खेति-पाति को करूं
को बदवनो कुड़ी भरांण।
भकार टटास लै रयीं
डब्बन् में पिसू चांवो
हल्द मर्चैकि पुड़ी है रयीं
को पूछों आब् नाइ- मांण।

चहा शराबक् जोर है रौ
तलि बाखइ मलि बाखइ
सैंणि मैंस बुड़ ज्वान द्यखो
सब्बै है रयीं तंण-तंण।
ओहो भै-बैंणियो होशम् आओ
शराबौक् व्यापार करि बेर्
न करौ यौ मुलुक बदनाम
देवभूमि छु हमरि दुनी में पछ्याण।

आइ क्ये है रौ द्यखनै रया
भ्यारक् मैंस हमर् थड़म् ऐ ग्यान्
भोल् हैं न कुड़ि रौलि
न रौल् हमौर् द्यप्तौ थान।
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हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), 27-07-2020
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर
 
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट

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