
कोरोना महामारी
रचनाकार: विजय लक्ष्मी मुरारी
भगवान क क्रोध छ यो या छ महामारी,
समझ है भ्यार है गै कोरोना बिमारी !
रोजी रोटी में लात लागी ऐ बेरोजगारी ,
प्रवासी भ्या परेशान द्वी रोटा कि चारि!
लागी गी घरौकै बाटा काना बोझ भारी
नाना छि नान्तिन कैकी गर्भवती नारी!
न कोई सहारो मिलौ ना कोई सवारि,
मिलो दूर चली आयो हिम्मत नैहारि !
दिन रात नौकरी करी अब घरे की बारि ,
घर कैका भीतर जूलों मन में दुख भारि!
14 दिन क्वॉरन्टीन जस- तसे गुजारि,
खुटान राहत मिली मन में चिनि उधारि!
घर पुजि याद ऐगै बुढिया महतारि ,
बाखली आंगन देखी आयो सोच भारि !
होली दिवाली नि आयूं कभै कतु चीज बिसारि,
ह्वेगि काम बन्द आज नरै जरूरत हमरि !
रोज करी नौकरि जैकी फैक्टरी,अटारि,
टिकट ले दिन में नै गे नियत तुमरि,
दुख सुख समझने नैरै औकात तुमारि!

0 टिप्पणियाँ