गजबजाट (dilemma)

कुमाऊँनी लेख-कभै फिर दिन पलटाल और हमार गौंक बाखय में चहल-पहल होलि। Kumaoni article dilemma of hill natives about migration to plains

-:गजबजाट:-
(उहापोह वाली उलझन)
लेखिका: अरुण प्रभा पंत

हम उत्तराखंडी पुर दुनि में मिल जाल आब।  कुछ साल पैल्ली जांलै हलद्वाणि, काठगोदाम, काशिपुर, रामनगर, बरेलि (बरेली) मोरादाबाद तकै सीमित हुं छी।  पिथौरागढ़ वाल अल्माड़पन लै कम कमै दिखींछी।  अल्माड़ और नैनताल (नैनीताल) यातो पढ़नी लौंडमौड या फिर साह बणी राठ दिखिनेर भाय।  अल्माड़ नैनीताल मुख्य पढ़ाय लेखाइक केंद्र भाय।  इतुकै में कुमाऊनी मैस दिखिनेर भै।

जब देश आजाद भौ वीक बाद कुमाऊनी लखनौ (लखनऊ) और दिल्ली ओर जांण लागी काफि तादाद में।  धीरे धीरे अगर क्वे कैं डबल कमूण लाग तो उ आपण दगाड़ आपण भाईबंद कं लै लिआय और यो सिलसिल (सिलसिला) चलते रौ और फिर उत्तराखंडाक गौन बै वांक जवान पढ़ी अधपढ़ि और अनपढ़ लै देशाक अन्य शहरन में ऊंण बैठ।  फिर लै बीच बीच में वापस जानेरै भै।  पर योयी उ बखत छी जब पहाड़ों बै शहरन हुं पलायनाक बीज पड़ी और खूब फलीं फुली, सबन कं डबल कमूणैक और गौं ग्वेठ बै दूर जांणैक मानो होड़ जै लागि डे।

जो मैसाक चार च्याल शहरन में जै बेर डबल कमूण लाग उन मैबाबनैक गौंपन सकर (अधिक)इज्जत हुण लागि।कत्तुनाक मैं बाब आब यकलै रूण हुं बेबस जा है ग्याय फिर लै होलि दिवालि उनैरि संतान उनै रुनेर भै पर जब उनैरि लै संतान जो शहरन में पैदा हैयी भैआब गौंग्वैठन जाणहुं नि मंसानेर भै (राजी नहीं होती थी)।  ऐस करनकरन फिर आपण गौन में त्यार ब्यार मनूण लै दूरैक चीज है गेय।

आब तो यो दाश छु कि क्वे लै पहाड़ों पन पुजपाठ करूण हूं लै ऊंछौ तो आपण घर में नै, आसपासाक डाकबंग्ल,रैजौर्ट या होटलन में ठैरनी और कुमाऊनी बलाणौक तो सवालै नि उठन पर अब एक बात जरूर छु ठुल कामकाजन में या थीम पार्टीन में नाखनथ्थ और रंग्वालिक पिछौड़ पैर बेर फोटो और वीडियो जरूर बणूनी।  ऐस लागुं कि बस कुमाऊनी हुणौक फर्ज अदा करणयीं।

युंतौ हमार उत्तराखंडी जवान फौज में आपण वीरता लिजि जाणी जानेरै भै और हमर उत्तराखंडैक अर्थ व्यवस्था कं मनिआर्डर अर्थव्यवस्था लै कुनेरै भाय पर तब फौज बै रिटैर है बेर उ फौजी आपणै गौन में ऊंण और रूण पसंद करछी, आपण थान(स्थान) कं नि छाड़छी (नहीं छोड़ता था) पर अब हम सब जो भ्यार रूण लागरैयां भ्यार नि छाड़ सकना और आपण पुरखनाक थान कं नि अपणै संकणांय। (नहीं अपना पा रहे हैं।)

हर इतिहास आपण पुनरावृत्ति करूं, ऐसै आस में हमलै ऐस आस कर सकनू कि कभै न कभै फिर दिन पलटाल और हमार उत्तराखंडाक गौंक बाखय में चहल-पहल होलि।

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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