
🔥आस्था व भक्ति का केंद्र नैना देवी मंदिर, नैनीताल🔥
शक्ति रूपेण संस्थिता...
राज्य के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नैनीताल की मां नयना देवी शक्तिपीठ के रूप में मानी जाती है। नैनी झील किनारे स्थापित मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि देवी सती की बांई आंख यहां पर गिरी, जो कालांतर में रमणीक सरोवर के रूप में रूपांतरित हो गई। यह मंदिर स्थानीय लोगों तथा पर्यटकों के लिए आस्था व भक्ति का केंद्र है। पूरे साल यहां भक्तों का तांता लगा रहता है।
इतिहास नयना देवी मंदिर झील किनारे स्थापित है। 19वीं शताब्दी में जब नैनीताल की खोज के बाद यहां के प्रमुख नागरिक पिलग्रिम लाज निवासी मोतीराम साह ने सरोवर के किनारे नयना देवी मंदिर बनाया, तब यह मंदिर बोट हाउस क्लब के समीप था। 1880 के भयंकर भूस्खलन में मंदिर नष्ट हो गया। बताया जाता है कि साह के पत्र अमरनाथ साह को देवी ने स्वप्न में वह स्थान बताया, जहां मूर्ति दबी पड़ी थी। वर्तमान मंदिर 1883 में बनकर तैयार हुआ। 21 जुलाई 1984 को मां नयना देवी अमर उदय ट्रस्ट के गठन के बाद मंदिर की व्यवस्था न्यास के अधीन आ गई।
खासियत-
नैनीताल आने वाले पर्यटक हों या विशिष्ट व्यक्ति, नयना देवी मंदिर जाना कभी नहीं भलते। बांज व ओक प्रजाति के पेड़ों से लकदक पहाड़ी की तलहटी में स्थापित मंदिर' की तुलना हिमाचल प्रदेश के नैनादेवी मंदिर से होती है। मंदिर के डिजाइन को पुरातन शैली में नैयार किया गया है। मां नयना देवी अमर उदय टस्ट की ओर से मंदिर का विस्तार कर बारह अवतार मंदिर भी बनाया गया है। पूरे मंदिर गरिसर को सुविधाओं से लैस किया गया है।
ऐसे पहुंचें-
मैदानी शहरों से आने वाले भक्तजन हल्द्वानी तक ट्रेन से, पंतनगर तक हवाई मार्ग से फिर बस या टैक्सी से नैनीताल आ सकते हैं। नैनीताल से काठगोदाम 40 किमी जबकि पंतनगर 70 किमी दूर है। बस स्टेशन से डेढ़ किमी दूर मल्लीताल के लिए लोकल टैक्सी व टैक्सी बाइक उपलब्ध रहती हैं।
”नयना देवी मंदिर करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है, यहां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। देश-दुनियां के लोग पूजा अर्चना करने व मन्नत पूरी होने के बाद मां के शीश झुकाने आते हैं। नवरात्र के साथ ही नंदा देवी सव, मंदिर स्थापना दिवस व तीज त्यौहारों पर विशेष पूजा अर्चना होती है।”
-बसंत बल्लभ पांडे, मुख्य पुजारी
जागरण संवाददाता, दैनिक जागरण, शनिवार, अप्रैल 9, 2022
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