
खाल्ली फसक - गुन्दि'का
लेखक - ज्ञान पंत
यो मूँ न्हात्यूँ मगर म्यार जसो और क्वे नान्तिन हुन्योल जो गुन्दि'का दगा्ड़ गरुँ बटी लमालम थल ग्योन्होल। उन दिनांन कां गाड़ि कां मोटर? अलमाड़ है पतीर क्वे सड़क'क नौं ले जांणनेर नि भ्यो। हमा्र गुन्दिका मानी गोबिन्द'का यानी भारद्वाज गोत्रीय श्री गोबिन्द बल्लभ पंत ज्यू और गरुँ यानी गराऊँ, पिथौरगड़ जिल्ल में बेरीनाग'क नजीक (देवीनगर ) एक गौं नाम भै। नक मानणैं बात नि भै - यो तुमौर गों ले है सकों! जसी गुन्दिका म्या्र, तुमा्र या और कैका ले है सकनीं, उसी कै यो नान्तिन क्वे ले है सकों और तुम ले है सकछा हाँ!
बात पचास साल है कम पुराँणि न्हाँ ब! बेयी उर्बी'का ऐ रैछी, यो उनलै बता कि हमार पहाड़न में पैलीं डाक्टर-फाक्टर निं हुनेर भ्या। डाक्टर आजि ले कां भै? और भये ले त नैनताल, हल्द्वाणि बैठि रिया। पीएचसी में त कंपोटर भै और कभै नि ले भै ! खैर, दु:ख-बिमारी में दूर दराज गौंन में बैद्य ज्यूनां वां जांण पड़नेर भै या बैद्य ज्यू बुड़ भया तो डोलि में बोकि बेरि लैयी जनेर भ्या। हमा्र इला्क में थल'क नजीक करया्ल गौं बैद्यकी लिजी फेमस भै। वां गोपाल दत्त ज्यूनां खानदान में यो पुस्तैनी कारबार भै।
औरनैकि फाम न्हाँ मगर गोपाल दत्त ज्यू गजब बैद्य भ्या। सुयाठ जा छह फुट द्वि इंच लम्ब, हाथ में आपण है ठुल जा्ंठ, पिठ में पिट्ठू और पिट्ठू में दवायि पाँणी नाम पर जड़ी-बूटी, घा-तिनाड़ भरीं हुनेर भै। हिटन बाटनै उचेड़ि ल्हीनेर भ्या, उनन पत्त भै कि ह्यूँन में फला्ंण पहाड़ में फलां जड़ी मिलैं या भाबर में उ वा्ल पात मिलनीं जैलि टीबी दवायि बणैं। इचा्व कन्हा्व बै हरीं पात, बोट, काटि कुटि, थेचि थाति बेरि रामबांण दवै बंणै दिनेर भै। ठंडी, खाँसि, जर'कि दवायि त एक बखत जै कैं खवै द्या्ल त फिर साल भरि जांणै उकैं छौव ले नि लाग्नेर भै।
आपण पीढ़ी में उना्र बाद फिर सबनलै बैद्यकी छाड़ि दे। एक ककी-भै (चचेरे भाई) बंगलौर न्हे गोछी जां उनैलि आयुर्वेद'क भौते ठुल अस्पलाल बणैं राखौ बल जैमै ऐलौपैथी डाक्टर ले नौकर छन। उना्र डाक्टर जवैं राठ और नान्तिन सब उमैयी काम करनीं, आ्ब यो कस आयुर्वेदिक अस्पताल छ जां ऐलोपैथी डाक्टर ले नौकरी करनी और मरीज भर्ती हुनीं, मैं पत्त न्हाँ मगर भौते सफल लोग छन। यो बात त मैं ले याद छ कि करीब चालीसेक साल पैली उना्र च्यालै बर्यात बंगलौर बटी हवै जहाज में लखनौ ऐ। रिस्त में म्यार ईजा'क "ममी भै" (मामा के लड़के) भ्या त न्यूँत हमन ले छी।
उन दिनान हवै जहाज में बर्यात लूँण और लखनौ में कार्टन होटल, हमैरि रिस्तेदारी मे कैकी बसै बात नि छी। बंगलौर वा्ल बैद्य ज्यू एक रिस्त' लि बाबूनां भिन्ज्यू ले भ्या किलैकि गोपाल दज्यूनैं घरवाई मेरि सांक्की बुब भै, खैर बात गे बिलायत ! अच्छयान को पुछण लागि रौ, फसक छ त यो बात ले हैयी जाऔ कि जैल पहाड़ छाड़ौ - वीले तरक्की ले करी! आज जो सोसल मीडिया में पलायन-फलायन पर बहस हूँण लागि रै या सोसल मीडिया में भुती गौंन'कि तस्वीर पोस्ट करण लागि रयीं या पहाड़-पहाड़ करि बेरि डाढ़ा-डाड़ है रै, यो सब उयी लोग छन! यो ले एक अणकस्सी बात छ कि पहाड़ है भ्यार निकयि बेरै नरै, निस्वास, उदेख सब लागो !
यौस् ले न्हाँ कि पहाड़ में "ठुल या पढ़ी लिखी मैंस" नि रुँन कैं। बात गौंन'कि छ त उत्तराखंड बणीं बाद प्रादेशिक सेवा में वयीं का लोग बाग छन मगर हालात आजि ले उसै छन। के खास फरक नि पड़,न दवायि पाँणि और पढ़ाई लिखायी लिजी मैंस आदि ले लखनौ, दिल्ली भाजनीं। यतु हैयी बाद ले हम यो नि कै सकनां कि पहाड़ में के नि है रौ कै। आ्ब वां ले शहरनैं न्याँत सब सुख सुविधा भयी और लोग बाग ले भये। तलि पन कारबार ले भये मगर मलि पहाड़'न में आज गौन जा्ंण हुँ कच्ची पक्की सड़क है बेरि ले पहाड़'क मैंस नि भै और भये ले त खालि भै किलैकि विकासा नाम पर वां "गंदगी" ज्यादे है गे। गंदगी मतलब आपुँ सब जांणनेरै भया हो, म्योर सोचण छ और मैं गलत ले है सकौं।
उर्बी'का बतूँण लागि रौछी कि गुन्दि'का उसी बैद्य त नि भै मगर थ्वा्ड़ अंताज जस उनन ले भये। मौक लागो त झाड़ फूक ले करनेरे भ्या। ठीक है ग्यो त ठीक नन्तरी "पूछ" करौ कै दी। को पुछण लगि रो- तुम ले लागि रौछा, आदु है ज्यादे त कुदरत ठीक करि दिनेर भै। थल बटी लौटण बखत पटै है गे त हमि लोग एक गौं में रुँकां। जिमदारन पत्त लागौ कि बामण छन कै त भलि आवाभगत ले करी गे। थ्वा्ड़ अन्या्र जस ले है गोछी त सबनैकि राय बणीं कि रात ययीं रुकौ कै। चहा पीन पीने एकली बतायि कि महाराज परार बेर च्यालौ ब्या करछी। साल भरि ठीक रौ, नाति ले है ग्योछी पर के करछा, च्यालैली बिस्तर पकड़ि है! दिन रात पेटपीड़ैलि डाढ़ मारौं, छातिक भौ ल्ही बेरि ब्वारि ले लागीं रुँछि मगर? रानौ मरन ले न्हाँ कौ! दुन्नयाँ भरी ईलाज करै है, जागर में ले के निकल न्हाँ, बामण ज्यू मणीं झाड़ फूक के करि दिनां धैं? के पत्त आशीर्वाद लागि जाऔ......।
गुन्दिका अत्तर'क शौकीन भै, पत्त नै के सोचि बेरि उनैलि जेब बटी बूटी निकायि और मेसि मासि बेरि एक गिलास गरम दूध लूँण तैं कौछ। जब जाँणैं गरम दूध नि ऐ उ अत्तर कैं सुर्ती न्याँत रघोड़नै में रयी। जसो दूध आ उनैलि अत्तर उमै हालि बेरि एक लोट्टी मे खूब साड़ों और फिर लौंड कैं पेवुण तैं को। सब, नि पी- नि पी कै लागि रिया मगर गुन्दिकालि कौछ तेक बा्ब ले पियौल और सात म्हैंण बटी खाँण् पिण छाड़ि ल्ही रयी लौंड कैं पींण पड़ौ। हमैलि ले नै ध्वे बेरि चुपड़ि र्'वा्ट साग पचका और पाल चाख में सिती गियाँ। एक आध घंट त नींन ऐ मगर वी बाद त बासलै नरुण है ग्यो, लौंड बिस्तरै में हगभरी ग्यो कूँछा। पट पट-- भुट भुट चाँण भुटै हैयी भै, औड़ाट घौड़ाट सुणि बेरि मैली सौचौ कि गुन्दिकालि लौंड मारि है और भोल हमोर फतोड़ हुनै छ आ्ब। उ'त अत्तर लगै बेरि बेहोस खिती ग्या और यां बदबू मारी मैं उखाव ले है ग्या।
धो धो पाड़ि रात काटी, रत्तै नांण ध्वेंण जांणै उना्र चहा ले ऐ ग्यो। कटकी चहा पीन पीनैं ठाकुर सैप बलिँणी कि महाराज आज और रुकि जाना त कस हुन, च्यालै हालत ठीक न्हाँ। गुन्दिकालि एक गिलास अत्तर घोसी दूध आजि पिवै देछ और आपुण सन्दी पुज में लागि ग्या। मैं आठ बरसौक हुन्योलूँ तब, खौव में नान्तिनां दिगा लागि गियूँ। छह म्हैंण बटी बिस्तर लागी च्यौल जब दोफरि मात आफि है बैठौ त ठाकुर सैप खुटन में हाथ धरि बेरि डाढ़ मारण बै ग्या। फिर गुन्दिकालि नूँणि निकायि छाँ मंगै बेरि लौंड कैं पिवायि और भूख लागण पर जौव खाणैं हिदायत दी। ठाकुर सैप बतूँण लागि रौछी कि ब्याव बखत जब लौंड भ्यार ग्यो त वी पेट बटी एक डौव् जस क्याप निकवौ।
दुुहा्र रत्तै हम आपण गौं ही बाट लागां। जा्ण बखत गुन्दी'का कैं टिक पिठ्या ले लगा उनैलि। चार पौ घियू और द्वि नायि कुटी सिरौव ले बादन, एक डबल म्यार हाथ ले लागौ। मैं कैं आज ले याद छ कि यो सामान सब मैकणीं बोकण पड़ौ। अत्तर लगै बेरि गुन्दी'का हिटनेर जि भ्या - उड़नेर भ्या उड़नेर, मैं सारि-सारी उना्र पछिल घर पुज्यूँ।
ठाकुर सैपनां गौं में माल्टा भौत हुँछीं। सीजन में डोक भारि (पीठ पर लादकर) लगै बेरि नारिंग बेचण तैं जब ठाकुर सैप हमार गौं पूजीं त गुन्दिका'लि बीमार लौंडा' क हाल पुछीं। ठाकुर सैपलि ईशारन में बता कि ताल छ्यो डोक भारि लगैयी जो ठाड है रौ, उयी म्योर च्योल छ। हमा्र गुन्दी'का पास दताव'कि मानी दाँत पीड़'कि ले गजब इलाज भै कूँछा! ये बार में दुहैरि फसक में " फसक " करी जालि।
ज्ञान पंत, 23-05-2020

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