टैम टैम कि बात

टैम टैम कि बात-कुमाऊँनी कविता, kumaoni poem about in=mportance of time, samay badalta rahta hai

टैम टैम कि बात

रचियता: राजेंद्र सिंह भंडारी

य टैम टैम टैम पर चाल खेलते  रौल,
मदारी  वाई य इंशानों कें छलते रौल।

पर हमेशा  तो नी चललि टैमकि चाल, 
टैम टैम पर इंशानों टैम लै बदलते रौल।

आज वीक तो भोव म्यर लै आल  टैम,
य सोचि भे टैम हाथ बटी फिसलते रौल।

टैम कभें लै नी आल दगड़ियों हमर हाथ,
थोड़ी हाथ में अभेर फिर य निकलते रौल।

यस टैम पर यस उस टैम पर उस करूंल, 
यों बात मन  में जिंदगी भर खलते रौल।
 
पक्का हजाल य काम सही टैम आल तो,
के न के बहानल  टैम इसिकै टलते रौल।

नी बन सकल ऊ हलु जो सबोंक पसंद छू, 
बस इमें घ्यौ और गुड़ हमेशा  डलते रौल।

न घाम और न दगड़ियों के स्योव मिलल,
य जिंदगिक टैम तो सूरज वाई ढलते रौल।

हम देखियै रौंल पेट पकड़ि भे इसिकै इकें, 
टैम उसीकै दूर तेल में पकौड़ी तलते रौल।

राज हय मी  को के  बिगाड़ सकल म्यर,
यस बेकार ख्वाब य दिमाग में पलते रौल।

तुमरि तो नी हलि  उन्नीस लै बीसक यां,
वां य टैम आपण फुलते  रौल फलते रौल।

दगड़ियों जो इंशान करौल भरौस टैम पर,
देखि लिया तुम ऊ रोज हाथ मलते रौल।

राजेंद्र सिंह भंडारी
फोटो सोर्स: गूगल 

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