
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
कूँणैं लिजी त
तुम
के ले कै सक्छा मगर
असल जिन्दगी त
" अमल " भै
महाराज ।
..........
भरौस
एकक ले नि भै
फिर ले
मनखी अतैरि रुँछ।
---------------
बोज्
कम करौ
तबै
" पहाड़ " हिट सकला।
..................
"बोज् "
पुठ मैयी नि हुँन
ख्वार में ले
हुँछ बल ।
---------
तु
भोल'कि चिन्ता में
आज मरै .....
भोल
पोरुव'कि चिन्ता में
मरलै ......
लाटा !
ज्यूँन कसिक छै तु!
..........,,,.
मैं
अमल छ भागी
तबै
तु ले "अमली" छै।
-----------------------------
कूँणैं लिजी त
तुम
के ले कै सक्छा मगर
असल जिन्दगी त
" अमल " भै
महाराज ।
..........
भरौस
एकक ले नि भै
फिर ले
मनखी अतैरि रुँछ ।
---------------
बोज्
कम करौ
तबै
" पहाड़ " हिट सकला ।
..................
"बोज् "
पुठ मैयी नि हुँन
ख्वार में ले
हुँछ बल।
---------
तु
भोल'कि चिन्ता में
आज मरै .....
भोल
पोरुव'कि चिन्ता में
मरलै ......
लाटा !
ज्यूँन कसिक छै तु !
..........,,,.
मैं
अमल छ भागी
तबै
तु ले "अमली" छै।
बखत जाँण में
देर जि लागें ....
बाछ् छियूँ
बहौड़ भयूँ ....
फिर बल्द और
आब्
बुड़ बल्द है गियूँ
रन्कारै .....
" मैंस " कब होलै?
...............
यो माया को
अलज्याट समझ तु लै
नन्तरि ......
को पुछँण लागि रौछी
ते कैं .....
और मैं कैं ले।
...............
मनखी बणैं बेरि
परमेश्वर कैं ले
मनसुप
लागि रयीं .....
आब् के न के
जरुर हुनेर छ!
............
भागी !
तु स्वैणां ले ऐयी कर
रात ले .....
"पुन्यूँ " जसी लागैं फिर।
...........
यसो रयो त
द्याप्त ले
" पत्ती " धरनेर
न्हाँतिन .....
तबै
कुदरत ले टेड़ी रै।
.................
शब्दार्थ:
अमल - नशा या चाहत (सन्दर्भानुषार क्रमशः),
एकक - एक का भी,
बोज् - बोझ (माया जाल),
लाटा - प्यारे,
कसिक - कैसे,
पुठ - पीठ,
भोल - क ,
पोरूँ - परसों
रनकारै - अरे गधे,
नन्तरि - वरना,
मनसुप - चिन्ता,
पुन्यूँ - पूर्णिमा रात,
पत्ती - लाज,
टेड़ी - (रूठी हुई / विरुद्ध)
August 27, 30, 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
ज्ञान पंत जी के फ़ेसबुक प्रोफ़ाईल पर जा सकते हैं
0 टिप्पणियाँ