ठग काल
लेखक - मोहन चन्द्र कवड्वाल
जो कान नी सुणन वी थें कोंनी काल। जो मतलवकि बखत सुण ल्यों। और नि मतलब नी सुणन ऊ भै ठग काल। कतकै ऊ खुशु चारी लै सुणि ल्यों, कतकै धात लगोंण पर लै नी सुणियौक बहाण करि द्यों और अरे मेंल त सुणै में के द्यों। सब जाणनी सरकार ले यस्सै करें। आपण हित में, सत्ताधारी पार्टिक हित में सब सुणै लेकिन और बखत या त सुणनी नें या अणसुणी बते दीं। लोग डाड़ मारनी 'रोजगार दो, पानी दो, बिजली दो, सड़क दो, शिक्षा और स्वास्थ्य दो।' लेकिन सरकार नि सुणनि और जब सुणै लै तो काम आपणे हिसाबैल करें। इस्कूल खोलें लेकिन मास्टर नी दिनि, अस्पताल खोलें लेकिन डाक्टर नी दिनी। आब सोचो यो सरकार भै या ठग कालि। यसि सरकार त पब्लिक कैं कलियै दिनेर भै।
जनता सरकारों कैं धतियोंनै रैजें। धरना, प्रदर्शन, हल्ला-गुल्ला, माइक बाजी, जुलूस सब कुछ लेकिन सरकार ठग कालि बणि जें। तुम हाल्ल करते रओ। सरकार कें के फरक नीं पड़न। विधायक-सांसद जो चुनावों बखत सब सुणनी, कान खोलि राखनी ऊँ लै बाद में ठग काल ह्वै जानी। लोग कौनी सरकाराक कान फुटि गयीं। कैते रओ, सरकार त ऊ करलि जैल वीकें फैद ह्वल। वी कें जनताक हित दगड़ि के मतलब। तबैत जनतंत्र फेल ह्वै जाँ।
सरकार अगर सुणनी त आज पहाड़ों कि यौ दुर्दशा नी हुनि। लोग पलायन हेतु मजबूर नि हुन। रोजगार पाणाक लिजी घर नीं छोणन। बाखवि, गों खालि नि हुन। अगर सरकार कान बन्द करि राखली तो धीरे-धीरे पुर पहाड़ वीरान ह्वै जाल और याँ बाहरी लोगों क 'रेस्ट हाउसों' है अलावा के निं रवा।
परमी जब आपण ध्यान में कहाँ हरै जँछी तो वीकि आम केंछि- परमिया कली गछै? वै की गौ त्वी के। परमी कोंछी- आमा यक भनक जसी ऐ, भलिक सुणीन ने। तब आम केंछि-दै ठग काला, तू सरकार बणि गछ। जसि सरकार उस म्यर परमी। दरअसल परमी ब्लौक में बाबु छी लेकिन वीक आपण गोंकि हालत सबों है खराब छी। ऊ कोंछी- कुछ दिन और पैंस कट्ल फिर हल्द्वाणि उजाणि हिट यूल। आब बताओ तास में विकास कांबै ह्वल। पैली बटी यक किस्स कौंछी
कौ लाटा काथ बाथ, सुण काला तू।
अनवै लै चोरि करी, दौड़ डूणा तू।।
लाट थें कोंनेर भै तु काथ कौ, काल थें कोंनेर भै सुण। अन्ध चोरि करनेर भै, डुन थें कोंनेर भै ऊ कें पकड़न हूँ दौड़ लगा। भै अनोखी बात, लेकिन आजकल तस भौत देखीनौ। लोग लाट वणि बेर सारि काथ कै दिनयीं। काल बणि बेर सब सुणि लिनयीं। अन्ध बणि बेर ठुलि-ठुलि चोरि करि दिनईं और जरवत पर डुन लै दौड़नयीं। यो जमानेकि खुबी छ। अल्लै आदिमि डुन बणि जाँ, अल्लै भाजण फैजां। अघिल जै बेर फिर डुन बणि जाँ। 'पुनर्मूषको भव'। यौ भौत ठुलि कला छ। बढ़िया एक्टिंग। आपण काम ह्वै जाँ, लोग बेकुब बणि जानी। ठग काल लै यसै त करनी। आजै नै हजारों साल बै करनयीं।
कोई-कोई काल द्वी कानोंल बिल्कुल नी सुणन। वी थें कौंनी बज्जर काल। कोई सुणि ल्यों लेकिन कम ऊ थें कौंनी 'लो सिग्नल'। कोई यक कानैल सुणों ऊ थें कौंनी 'वन साइडेड'। कोई यक कान बै सुणि बेर दुसार कान बै निकालि द्यों मतलब 'डिलिट' कर द्यों। यसि आदत भौत्तै लोगों में होई करें। मास्टर लोग लै नानतिनां थें कौंनी- एक कान से सुनता है- दूसरे से निकाल देता है। ये बात कैं सुणि बेर यस लागों जसिक द्वी कानोंक बीच में कोई पाइप लाइन हुनैलि। ठुल-ठुल लोगों में यौ आदत हुण चें तबैत ऊँ 'टेन्शन फ्री' रौल और दिन पर दिन ठुल होते जाल। होते कि जाल, हजारों ह्वै गईं और हुने में छें। उनूँल नानतिन लै उसै बणै हालीं।
लोग कौंनी कान नी लै भयात के बात नें पर आँख ठीक हुण चैनी। कान फुटि जाल तो भल नक के नी सुणियां। लेकिन कान फुटण पर आदिमि झक्की, शक्की और बक्की ह्वै जाँ। तबैत लोग कान खराब होते ही मशीन लगै लिनी। यौ अलग बात छ कि कभैं-कभैं ऊँ फँसण है बचि जानी। कै दिनी ऊ बखत मैल मशीन 'आफ' करि रैछि या मशीन ठीक काम नी करनै। आदमी नें मशीन लै ठग कालि भै।।
जो अदिमी कान नी सुणन ऊ कभैं-कभैं बड़ि मजेदार बात कौं। यक विधायक ज्यू एलबम देखण में लागी भै। यक बुढ़ उनरि पास आ। वील कौ- विधायक ज्यू तीन साल बटी लागि रयों लेकिन मेरि वृद्धावस्था पेंशन मंजूर नी है, के करि दिनां। विधायक ज्यू एलबम घूरते बुलाणी- तुमूल ठीक कौ तीस साल ह्वै गयीं यो ब्या होई लेकिन कि करछा औलाद न थें। जरूर के करण पड़ल। आदिमी एलबम उजांड़ि चाइयै रैगो।
विधायक ज्यूल बुढ़ ज्यू कि अर्जी पकड़ ली। बुढ़ ज्यू बिचार लौट गईं कुछ समय बाद बुढ़ ज्यूक पास पेंशन विभाग बटी यक चिट्ठी ऐ। उमें लेखी भै, किस विभाग में सेवा की और पेंशन प्रकरण कब भेजा गया? दरअसल विधायक ज्यूल ऊ अर्जी सरकारी नौकरी कि पेंशन जाँ बटी मिलें वाँ भेजि दी। भैनें ठग ठग काल। अर्जी पढी लिन, अर्जी पढी बिना 'नोटिंग' करण लै यौ श्रेणी में ओं।
यक बिचार आपणि गोपनीय बात दुसार कें बतानेर भै। ऊ बुलाणौ- अरे ऊँचा बोलो मुझे सुनाई नहीं देता। दुबारा फिरि कौ- और ऊँचा बोलो। परिणाम के हो, बात कि गोपनीयता खत्तम। सबों कें पत्त ह्वै गौ। ठग काल यसै चाँछी। सावधान- राजनीतिक पार्टियों क पास लै यास ठग काल हुनीं।
आपूँ कोई आफिस में जै बेर सैप या बाबु सैप थें आपणि बात कौला। ऊ आपण टेबिल में सामान कें यथाँ उहाँ करते रौल। फाइलों कें खोलते बन्द करते रौल। कागजों कें उलट-पुलट करते रौल। आजकल कम्प्यूटर में खेल करते रौल। तुमरि बात सुणनयीं या नें, के समझ में नी आवा। तुम थें 'चुप रहो' ले नी कवा। तो समझण चैं यास सहनशील महायोगी कान सुणते हुए लै ठगकाल हुनीं। तुम आदुक घण्ट तक बक-बक करि बेर खुदै न्है जाला या जेब में हाथ खितिबेर के उनार हाथ में धरि द्यला शायद फिरि उनार कान खुलि जो।
आज सब प्रकाराक ठग काल मिलि जानी- शासकीय, अशासकीय, सहकारी, पंचायती, निजी, कारपोरेट, ए.पी.एल., बी.पी.एल., सीनियर, जूनियर, ठुल, नान कतुक जै प्रकाराक ठग काल। यो सर्वव्यापी छें। सब में छें, सब बखत छें, हर युग में होई करनीं। भौत लोग पैंस लिण बखत ठीक-ठाक हुनी लेकिन पैंस दिण बखत ठग काल बणि जानी। भौत दुकानदार लै ठग काल हुनीं। सामान दिनीं, हिसाब जोड़नी पर भौ नि बतूँन। ज्यादा पूछताछ करण पर- बताओ कतुक लिण छ। ठीक भौ लागि जाल कै दिनीं।
गाड़िक इस्टेशनों में कान साफ करणी मैंस कानों बटी कतुक जै मैल निकालि दिनी पर ठग काल उनूं है दूर रौनी। ऊँ जाणनी यौ साफ-सफाई करणी ले ठग हुनी। कान लै साफ करनी और सामान लै साफ करनी। इनँ है बचण चें। ये है बेर ठग काल रूण भल।
ठग काल हुण भौत ठुल 'उनूंकें सकल पदारथ बिना काम करिये मिलि जानी।' ठग काल हुणाक कारण कतुक बात इनार 'संज्ञान' में होते हुए लै संज्ञान में नि हुन। कतुकै खराब समय हो यों स्थिति कें 'तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण' में धरनी। भले ही इनूँ थें लोग कै दिनी अति ठग काल छै, कुछ समय बात बज्जर काल ह्वै जालै। त्यार कानों में तेजाब खितण ह्वै जो। लेकिन यों छें कि विचलित नि हुन बल्कि तेजाबकि बात सुणि बेर और लै एफ0आई0आर० दर्ज करै दिनी। तो भाई ठग कलां है बचो और संभव हो तो खुद ठग काल बणि जाओ। किलैकि यो समयकि माँग छ।
शरण धाम, सतौली, पो०- प्यूड़ा (नैनीताल)
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