
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
मनखी छै
तु .....
सिसूँण
झन हैये।
............
ज्यूँन
रुँणौंक
नामै ~~
जिन्दगी छ।
...............
उ
मरीं बाद ले
ज्यूँन छ .....
तु
ज्यूँन छिनानै
" मरी " भये।
.................
बातै ' की
बात हुनेर भै
नन्तरी
हाड़-माँस 'क त
मूँ ले भयूँ।
....................
भौत दिन हैयीं
कैले के
कौय् ले न्हाँ ....
सोचूँ !
आ्ब मैं ले
" ठुल " है गियूँ।
............
पत्त न
के आ्ग लागि रौ
मनखी-मनखी कैं
"जै" लागि रौ।
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बखत उनै रौल
जानै रौल ....
कैकी इंतजारी में
ठड़ी नि रौल ....
सूर्ज
आपण टैम में
ऐ जा्ँछ
हा्व चलैं
बर्ख हुँछि और
मौसम बदयी जानीं .....
दिन
दोफरि
घाम
ब्याव हुँ
अन्या्र है जां
रात हुनेर भै
फिर उज्याव हुँछ .....
चैत
बैसाख
जेठ .....
सब आपण हिसाबैलै
उनीं - जानीं रुँनीं
याँ , चा्ड़ प्वाथनौक् ले
हिसाब हुँछ मगर
मनखी
बेहिसाब छ .....
तबै तैक
के पत्त नि चलन्
फिर ले
कतु बीसी सैकड़ में
दिन
म्हैण
बरस .
सब लाग्यै रुँछ ....
आजि ले बखत 'की
इंतजारी में!
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शब्दार्थ:
सिसूँण --- बिच्छू घास
ज्यूँन छिनानै --- जीवित होते हुए भी
नन्तरी --- वरना
कोय् -- कहा
ठुल --- बड़ा
जै --- झपटना
June 18, 25, 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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