मेर पुराण दिन

कुमाऊँनी भाषा की कविता - मेर पुराण दिन, Kumaoni language poem remembering old child time days, Kumaoni Kavita

-:मेर पुराण दिन :-

लेखिका: अरुण प्रभा पंत

आम-बड़बाज्यूक जुगलबंदी देखीं छी
हम नानतिन बताश, मिशिरि ल्हिणू 
चुप्प हाथ जोड़ बेर बैठ जांछि सुरु-सुरु
आरती बाद हमौरअमिर्त्त हम खां छियां
आम बड़बाज्यूक हाथ हमार ख्वारन
हम उछल-उछल खांछिया उ प्रसाद
हमरि उ थ्वाड़-थ्वाड़ जरवत उ हरिष उ पिरेम
हमरि मुखागिर पढ़ाय काथ उ दो एकम दो, 
नौअठ्ठे, निआय तो खाय मार
कैं हरै जे गेयीं आज सब छु हमन थैं
पर उ संतोष उस उछाह नि पाईन कैं
उ नौलाक धारौक ठंडो पाणी उ हौ
उकाव उल्हार जल्दी पुजणैक हौस
उ धुरतोय नानछिनाक चायपाति हमरि
जे मिल ते खाय त्यार ब्यारनैक धूम
ढोलिक शिणी नय लुकुड़नैक हौस
पड़ौसपन घुम बेर धिंगाड़ दिखूंण
ख्यालि दा दगै गाढ़ में बौं काटण
गाढ़ बै माछ पकड़ वैं भुड़-भुड़ै खाय
धुर बै हमौर चीड़ाक ठिठ, घुश्याल चांण
बिलैं मिठ्ठै चाट खाण बुबुक खल्ती चांण
हमार नानतिन के जाणनी कौतिक
केछु वांक दूद-जलेबि बालमिठ्ठैक मज
हमार नान नान दुख लै भाय, के बतूं
को लिगोन्हौल हमौर लगिलौक साग 
काकौड़,लौकि, गदु रोज गिणन भाय
दिद ऐपण शिखण में खानेर भै डांठ
हम ताइ बजै दिद कं गिजूनेर भयां
पल्कै जाओ अल्लै उनूं जागौ जागौ
खेलन-खेलनै क्याप क्याप सिख हमुल
क्वे न क्वे काथ आणतो हमार भयै 
पौणपछ्छी ऐयी में केद्याल हमन कं
हम ठाड़ै रुंछिया वीक समुणि उमेद में
हमुल के मांग ल्हि तोआमौक जांठ
हम डरनेर लै अथाह भयां ठुलन देख
ऐसिकै कब ठुल है गयां भैर ऐगयां
आब यांक तौर-तरिकन में सब भुलां
कांक छां को छां सब मकं छु पत्त
बस यो म्यार नानतिनन कं बतूण छु

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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