इजा (माँ)

कुमाऊँनी भाषा में कविता इजा (माँ)- maa par Kumaoni Kavita, Poetry in Kumauni language

"इजा"

रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
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'जो चिताय जदुगै सार् मींल उ उदुगै पितिल।
मयड़ि जसि संसार में भलि उ क्वे लै कभैं नि मिल।।

मयड़ि क् दूदा क् दाम दि निझरक हैजैं दुनीं।
नासमझौं का घर दुनि में अलगै जै के हनीं।।

मयड़ी की माइ-मामता और मै क् गुण ज्ञान।
कोटि शेष लै आपण मुख ल् नि करि सकन बखान।।

जब जब पीड़ा क् रास् लागीं मुख मयड़ी क् नाम।
हिया क् क्वाठनि है जाँछ दुखड़ी क् थिरथाम।।

जो बाऊ की पीड़ चितै मानैंछ आपु पीड़।
धन मयड़ी पराँणि त्यरि धन धन त्यार काथ् क्वीड़।।

जब जब लै जनम मिलो य धरती में ऐबेर।
मि बाउ बणि त्यार् काखि भैटौं तु मयड़ी हैबेर।।

कऊँ कमल जास् हाथ इजू उँ गंगघाट जास् खुट।
चरण कमलौं की धूल तिर छन् सब्बै तीरथ झुठ।।

अमृत का भाँन् में डुबै झरझ़र मयड़ी बोल।
म्यार हिय का आँङण मेंजी बरख हैंछ एकतोल।।

म्यार ख्वारक् माँथि रओ इजा त्यर निर्मल हाथ।
मि अवगुणि का हिय तेरो रओ हमेशा साथ।।

छै साक्षात दुर्गा इजा तु छै साक्षात लक्ष्मी।
त्यार् दर्शन करि निहंग कैं कभैं नि हँणीं कमीं।।

मोहन जथाँ लै द्यखनूँ  उथॉ उथाँ छू इज।
सुन्दर मुखड़ी जाँणिं गढ़ी कोटि कोटि मनसिज।।

मयड़ी तेरि माइ जी रो धन मयड़ी त्यर मन।
जिबड़ी का टुक में बसी अमिरत हैं छु धन-धन।।

धन-धन बड़ ठुल भाग इजु धन मयड़ी तेरि कोख।
जाँ जाँ चरणूँ क् वास त्यर दूर दरिद्र दुख दोख।।

मै क् मन हौं दरिया जस भरि सौ़णक् बादोव।
कल्पवृक्ष जास् चरण कमल सुख दिणिया आँचोव।।

पीड़ दिणीं आपत भया पीणीं पीड़ कैं मै।
हसनैं बाट् काटि गेछ मुख आपणां का चै।।

नि मिलो क्वे लै इज जसी उ मयड़ी जस को हौं।
माइ भरी द्वि आँखि सदा खभैं नैं ट्याड़ा भौं।।

भारी मनम में पितृऋण ठुल  हुँ  ऋण महतारी।
कर्जवान नि है सकौं उॠण विक् ॠण कसिक तारीं।।

वंदनूँ  चरण कमल त्यरा कोटि कोटि बलिहारी।
इजु अमर रैये तु जून जसि तु धरती की चारी।।
कुमाऊँनी भाषा में कविता इजा (माँ)- maa par Kumaoni Kavita, Poetry in Kumauni language

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मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 27-01-2016

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