जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

कुमाऊँनी भाषा में शेर-शायरी, ज्ञान पंत जी द्वारा  Sher-Shayari in Kumaoni language by Gyan Pant, Kumaoni Shayari

जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

रचनाकार:  ज्ञान पंत

जब 
आँखर बलानीं त 
समझ ल्हियौ 
अँणकस्सै हुनेर छ...    
 नींन 
टुटैं  "लोक" में 
जंङव ....

हाका-हाक करनी 
गाड़-गध्यार 
अतरनीं और 
पहाड़.........

रड़ि जानीं, तब 
आपण दगाड़ 
गौं , घर 
बोट डाव , ढुँङ 
सब एकबट्यै  बेरि ...

शहरन में ले 
पुजि जानीं .........
भुला ! 
यसी कै 
बखत पलटौं बल 
और " सरकार " 
ढुँङ में रै जानीं , मगर .....

या्स टैम में 
त्योर कटकी रुँण 
कतई भल नि भै 
सो्चि ल्हीयै ....
कि कौ कै .....।
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अन्या्र कूँछ 
 उज्या्व छैं ....
आ्ँख फुट्टानै ? 
"अगाश" में 
बादल भये त 
के न के ~
हुनेरै भै। 

अगाशै - दुन्नी त 
मरण बादै देखियैलि 
ज्यूँन छिनानै 
सोचण में के हर्ज छ?

के मनसुप 
लगै लगै ल्ही रौैछै ....
"बादल" त 
अगाश में छन। 

मलिकै 
चायी कर 
दुन्नी 
न्यारी लागैं।

 दुन्नी 
ययीं  छ
अगाश त 
"विचा" भै। 

शब्दार्थ:
अणकस्सै - अनोखा 
हाका हाक - चीखना चिल्लाना, 
अतरना - बौराना, 
रड़ि - फिसलना, 
एकबट्यै - इकट्ठा करना, 
कटकी रुँण  - चुप लगाना, 
कि कौ कै - क्या कहा था
कूँछ - कहता है,  
आँख फुट्टानै - आँखें फूटी हैं,  
ज्यूँन छिनानै - जीते जी,   
मनसुप - ध्यान , मनन, 
मलिकै - ऊपर को,  
चायी कर - देखा करो

July 03,05, 2017
...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार

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