
शकुनाखर (धुल्यर्घक् गीत)
तारा पाठक (आमा कोचिंग सैंटर)
छाजा में बैठी समदिणी पूछै
को होलो दुल्हा को बाबा ए,
को होलो दुल्हा को दादा ए,
को होलो दुल्हा को ताऊ ए।
हस्ती चढै़ समदी, दाम बिखेरै,
कालो छ जूतो,पीली छ टांकी,
वी होलो दुल्हा को बाबा ए।
खोकलो छ बूढा़, लम्बी छ दाडी़,
वी होलो दुल्हा को दादा ए।
लाल दोशाला, श्वेत छैं लुकुडा़,
वी होलो दुल्हा को ताऊ ए।
छाजा में बैठी समदिणी पूछै
को हलो दुल्हा को चाचा ए,
को होलो दुल्हा को बीरन।
घोडी़ चढै़ वो तो कौडी़ बिखेरै,
वी होलो दुल्हा को चाचा ए,
वी होलो दुल्हा को बीरन।
गदहा चढै़ सजना रूपैं बिखेरै
वी होलो दुल्हा को जीजा ए,
वी होलो दुल्हा को मौसा ए।
नीली छ हस्ती ,जरद अँबारी
वी होलो दुल्हा को मामा ए।
थरथर कांपे हाथ समदी के हाथ
वी होलो दुल्हा नाना ए।
घोडा़ चढी़ समदी रूपैं लुटावै
वी होलो दुल्हा को फूफा ए।
(धुल्यर्घक् बखत गाई जाणी यो गीत लै बड़ भल लागं जब गिदारी ब्योली मै तरुब बटी प्रश्नोत्तरी ढंगैल यो गीत गानी और बराक् बाबू ,बढ़बाज्यू ,जिठबौज्यू लोगों पछ्याण उनर पैराव बटी दर्शूनी।)
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