Jindagi k haal(3): जिंदगी क हाल

कुमाऊँनी कविता-जिन्दगी उकाव, जिन्दगी होराव, कभैं अन्यार औंछ यैमें, कभैं छ उज्याव। Kumauni Poem describing about life how it goes

Jindagi k haal(3): जिंदगी क हाल
खरी खरी-445 : जिंदगी क हाल (3)
रचनाकार: पूरन चन्द्र काण्डपाल

जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव
कभैं अन्यार औंछ यैमें
कभैं  छ उज्याव।

कैहूणी किरमाडू छ यौ
कैहूणी कांफोव,
कैहूणी बगिच कैहूणी
घनघोर जंगोव।
कैहूणी धान कि बालड़ि
कैहूणी पराव।
जिन्दगी...

कैहूणी छ झोल यैमें
कैहूणी गुलाल,
क्वे उडूँ रौ मुफत की
कैक हूं रौ हलाल।
क्वे मानछ धान ख़्वारम
क्वे लगूं दन्याव।
जिन्दगी...

उकाव -होराव मजी
सब छीं रिटनै,
कैं दगड़ी मिलि जानी
हिटनै-हिटनै।
जै पर यकीन करौ
वील करौ छलाव।
जिन्दगी...

के तू यां लि बेर आछै
के तू यां बै लि जलै
के ट्वील यां कमा
सब यां ई छोडि जलै।  
तेरि  नेकी बदी कौ
रै जालौ लिखाव।
जिंदगी...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 24.06.2019

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