जिया राँणि - कुमाऊँनी लोकगाथा (भाग-१)

कुमाऊँ की लोकप्रिय लोकगाथा जिया राँणि पर आधारित खंडकाव्य Famous folk tale of Kumaun Katyuri "Jiya Rani"

कुमाऊँनी लोकगाथा-जिया राँणि
(भाग-१)
(रचनाकार: अम्बादत्त उपाध्याय)

कत्यूरी रानी "जिया" के सम्बन्ध में कुमाऊँ में कई जन श्रुतियाँ प्रचलित हैं 
जिनमें "जिया राँणि" के नाम से उनके बारे में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।  
ऐतिहासिक रूप से उनके बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है 
पर इतना अवश्य है की वह कुमाऊँ की एक वीरांगना थी, 
जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने किशोर पुत्र के साथ 
कत्यूरी राज की बागडोर संभाली थी।  
उनका समय लगभग १४००-१४५० ई. के दौरान का माना जाता है, 
जिस समय भारत में तुग़लक़/सैयद/लोदी वंश का शासन रहा। 
 यहां पर हम  कत्यूरी "जिया राँणि" के जीवन पर केंद्रित खंड काव्य 
कत्यूरी "जिया राँणि" को प्रस्तुत कर रहे हैं।  
इस खंड काव्य की रचना श्री अम्बादत्त उपाध्याय जी द्वारा की गयी है 
जिनका संक्षित्प्त विवरण खंड काव्य के प्रारम्भ में दिया गया है।  
यह खंड काव्य कत्यूरी "जिया राँणि" के चरित्र के साथ ही 
कुमाऊँनी साहित्य की एक उत्तम रचना भी है।


ईश्वर वन्दना
ईश्वरा भगवाना तुम है जया दयाल।
दीन दुखियों क प्रभु, करिया खयाल॥
 हृदया में बैठि जये, माता सरस्वती।
सब लोगों कणी दिये, भली भली मती॥ 
गणेश जी तुम हणी, हाथ छै जोड़िया।
य किताबै कणी तुम, पुर करी दिया॥ 
शिव पारवती जी हैं, मेरी नमस्कार।
तुमर मकणी प्रभु, वड़े छ सहार॥ 
माता देवी गौ मजै की, पंचनाम देवा।
कत्यूर भुमिया मेरी, मानी लिया सेवा॥ 
सबै झणौं हणी हात, जोड़िबै अरजा।
के गलती हैई जाली, न हया नराजा॥ 
पढ़णिया लोग भलि, भात पढ़ि लिया।
कथै कणी भूल हली, माफ करी दिया॥
 भलि भात सुणि लिया, म्यरा भाई वैणी।
झित घड़ी भुलि जामो, काम धन्दै कणी॥ 
अपू हैवै ठुला हैति, कनू नमस्कार ।
छ्वटाछ्वटा नन हणी, भौत भौत प्यार॥

कवि का परिचय 
जरा लेखी दिनू पैली, मैं आपणा हाल।
चालीसवा लागी रौछा, मकणी य साल॥
अम्बादत्त नाम म्यर, गांव छा डढूली।
ड्राईबरी काम कनू , शहरा देहली॥ 
मल्ला ककलासों नाम, हामरी छौ पट्टी।
उपाध्याय जात मेरी डाकखाणा घट्टी॥ 
जिल अलम्बड़ हय, पहाड़ मुलुक।
ज्वड़ छा हमर भाई, द्वीया भैवणूक॥ 
तीन नना म्यरा छै हो, एक भैक नान।
तुमरी दया लै गौ में, एक र्वट खान॥
द्वी चेलिया छ्वट भैका, एक मेरी नान। 
सैणियाँ हमूकै मिली, भल खानदानी॥ 
अपू अपू हैवे लागी, रई कार बार।
दिराणौ जिठाणी मजी, वैणियौं ज प्यार॥
 यनू लिने हुई रैछ, दसू में इज्जत।
_स्वरग है गई बाज्यू नौ छी रामदत्त॥ 
बीस सालक मैं छिय, हमू छोड़ी गया।
म्यर ब्या आपण हातलै, उँ करि गया॥
ईश्वर कृपा लै आजि, ईज सिर पारअ।
भागि छा विचारी एक सारै परिवार॥

मैंते तरुवै जै कै, बड़े छा कलेश।
मामी की जिन्दगी तक, मकोटक देश॥
य बातक मिकै लकी, बड़े रह दुःख।
ममा मामी लै निपाय, औलाजक सुख॥
आम और मम गया, स्वरग सिधारी।
मामी कणी बड़े दुःख निरनी सुख्यारी॥
सन छियासटम हय, ककै हैबे न्यार।
दगड़म चली रौछी, भल कारोबार॥ 
हम सब भैबणू में, छिय मेल चाल।
गरदिश आई गई, हमू कै उ साल॥
दुःख म्यकै हय भौत, य बातक भया।
जाणि क्या यहई गई, ईश्वरैं की मया॥
अधिना द्यखांछ भाग, जाणि कस कस।
सुख दुःख लागी हय, जैक भाग जस॥
तुमु कणी सुणै हली, अपण यो हाल।
गरीब आदिम छों मैं, करिया खयाल॥ 
थ्वड़ै भौत मैंछौ भाई, पढ़िया लिखिया।
मेरी सब बातों कणि, ध्यानम धरिया॥
दुःख सब काटि दिला, नौ लाख कत्युर।
य कितावै कणि तुम, सुणि लिया पुर॥

जिया राणि कथा प्रारम्भ 
खातिन्य की चेलि हई, सुणो जिया राणि।
कसी कसी हैछ माई, ईश्वरै करणी॥
बात सब जाणि ल्यला, पढ़ि ल्यला जब।
शिलोरा का खाति रजा, सुणि लियो अब॥
अन धन भौतै हय, नै क्वे सनतान।
रज राणी रात दिन रनी परेशान॥
नै भल पैरण खाण, नै कैपारि मन।
आपण झुरानी द्विय, तन व बदन॥
ईश्वरै करणी पारि, कैक निछ बस।
मन थीर पार नहैं, रैछ झस झस॥
यतु अन धन छाय को यकणी खाल।
हमरा मरिया बाद, बरो बाद जाल॥
सवाल राणि का 
दबाईया धन परि लागि गोय खय।
एक दिन बुड़ियलै बुड़े हैती कय॥
जै आओ कैलाश मजी, शिवजी का पास।
उने स्यब करिवे, क्वे निहय निरास॥
 भक्ति करो तुम अब कैलाश जै बेरा।
वरदान शिव दिला, खुशी हैई बेरा॥
तव माँगी लिया तुम, उनू हैती बर।
च्यल मांगी शिव हैणी तब अया घर॥

जवाब खाति ज्यू का
यो बातू कैं सुणी खातीज्यू कैं ऐगे हैसी।
त्वीले आज बात कैदी छबटानना जसी॥
चौथि य अवस्था मेरि कसि कैंछे बात।
होणि हार सबै भागी ईश्वरा का हात॥ 
हम द्वीनू भाग पारी नैहैंति औलाज।
कसि त्वीलै बात कै य किह तिकैं आज॥
जवानी में हैणी हना हैई जना नना।
बुढापी उमर मजि अब क्वे निहना।। 
कसी कोंल शिव जी हैं अण होती बात।
चावनू क सुण मुये हैई गोछ भात॥ 
बरस हैगई मिक तीन बीसी चार।
खुट हाथ थाकि गई कसी जानू भ्यार॥
हूंणी हूंणी फूलि बति हैई गेछ दाड़ी।
क्वचारना अंख न्हैगी देखिले तू माँणी॥
गुम्यावा समान हैगे य मेहि कमरा।
सर में की बात हैई कसी मांगू बरा॥
सबूका बीचम हैली मेंसी उती मेरी।
क्य बजर पडि गोंछ अकलम तेरी॥
जवाब राणि का 
जना जब हैई जानी कृपा शिवजी की।
आदत छ तुमू की पैली ना कणै को॥

घर कणि भैटी बती क्य तुम करला।
भल काम करों हैंणी किलें कि जै जला॥ 
यक नसी मति गे, उरण बछाण।
यथां ऊथां जैहैं जानी तुमरा परांणा। 
मेरी बात मानो हैंणी, खैलिछा कसम।
सनतान हैई जानी, सैति ल्यून हम॥
जवाब खाति ज्यू का 
रोजै-२ हैई जांच द्वीनू कै झगड़।
आखिरी मेंखाती ज्यू के जांण लैकिपड़॥ 
क्य करंछी रात दिन, लगे दी करोली।
सैणियों आदत सबूं कैं मालूम होली॥ 
जब सैणी कंणी बाबू, जिद आई जैछ।
तब उ अपणी मन कसि कैबे रैछ॥
हैजानी तैयार खाती, कैलाशा जोहंणी।
दूर तक बुड़ीं गेई, उनू पूजा हणि॥
खातिज्यू लैंरई बाब माठु माठू बटा।
हातम लिरह एक, टयक हैणि लठा॥ 
थाकि गया दिनी तब सैणि कंणी गाई।
बुड़यनि बखत मेरी, कसि दस काई॥ 
हिट. हिंटने खुट, हई गई ल्वड़ा।
नकि सैणि दगे कैक, पल झना पड़ा॥ 
भुक तिस थाकि खाति, ज्यू हैगया रूना।
शिवजी मिलिला यछी, मन मैजी धूना॥

मरनें तरनें पूजा, कैलाश पर्भता।
आघिनै की भाई लोग, सुणि लिया बात॥
भैटि रई तप मजि नौनामी देवता।
कैलाश ऐगोय लाग, खाति ज्यू कै पता॥ 
भौते कसी द्यखा ऊती, ठूल ठुला रज।
सुनुका मुकुट हया, जना सिरों मजा॥ 
त्यागि अया सबै लोग अवैं राजधानी।
दाड़ी जटों वाला रिछा, साधू बड़े ज्ञानी॥
महा देव तपस्या में, हैरई मगन।
सुमिरण करै हैरीं, अपा अपा मन॥ 
एके कैबै खाती रज सबु कैं देखनी।
के विपत यनु कणी, हनली स्वचनी॥ 
जांणना छै ज्ञानि लोग, शिवजीं की मय।
अनपढ़ मूरख छों, मैं हो म्यरा भया॥
भोले नाथे किरपा लै, टींकीं सनसार।
भगतों कैं कनी शिब नरका है भ्यार॥ 
भौते जल्दी कृपा हैछ, भोले नाथ ज्यु की।
आघिना क्य हय बात, सुण खाति ज्युकी॥ 
भैटि गई खाति रज, शिवा का ध्यानमा।
मुखबै निकालो हरो, शिव शिवा नाम॥ 
तपस्या करने हैंगो, अब भौत दिना।
खाती ज्यु पलको कणी, ख्वलनै न्हैतिना॥

यस देख्यै हैरीं जसा जमी हल जड़।
खुट हात हैंई गया, सूकी ज लाकड़॥
एकागर मन लगै, क शिव क ध्यान।
सुफल हैंगया, भोले नाथ भगवान॥
सामणी प्रकट हया, कनी एसी बात।
क्य लिहैं ऐरेछ एति, बुड़यनि बखत॥ 
तन मन लगै त्वीलें, कोंछ म्यर ध्यान।
ज्य मांगलै स्य मैं द्युला त्यकै वरदान॥
क्य चैछ त्यकंणी बता, संकोच ना कर।
पूरी तेरी भक्ति हैगे, नैंहै जा तु घर॥ 
मन धन चैं तिकणी, सुनु चाँदी ढेर।
दबड़ बतै दे किलै, लगा मेंछै देर॥ 
खाती ज्यू सुणानी जब, शिवजी की बात।
खुशी मारी बाच, निऐ जोड़ि रया हात॥ 
ठाड़ उठा खोलि लिया, अपण पलक।
दर्शना करा पैंजै, भोलेनाथ ज्यू क॥ 
कैलाश पति का हैगी आज दर्शन।
जनम हैगोछ म्यर, धन धन धन॥ 
उमर भरि की मिली, गेछ य कमाई।
भोले नाथ ज्यू कै रैगी खाति ज्यू चहाई॥ 
शिव जी की पैरी हैई, मिरगैं की छला।
एक हात पैजि हय, मारि कमंडला॥

डमरू लेइया छिय, दुसा हाथ पारी।
कानु में कुंडल पैरी छी भारी भारी॥ 
खारंण चपोड़िया छी, सारे बदना में।
लौलीन हैगया खाति, उना चरणा में॥
पैजै खुटा पड़ि गया, टेकी घूना बेली।
म्यकैं बरदान दियो, हैजो मेरी चेली॥ 
च्यल जै मांगुल कछी भोलेनाथ हैंणी।
को जांणी सक्व भया, ईश्वरै करणी॥
जैका भाग पारि वा ज्यलेखिया होंछा।
उकंणी उ चोज के बहाने मिली जैंछा॥ 
खाति ज्यु का भाग पारी, निछी च्यल सुख।
चेली मांगी बति पैजै भौत पाय दुख॥
 मुकदर मेंजि जैकी जो चीज निहनी।
विकी मति ईश्वर, पैल्ली हरि लिनी॥ 
विभुती दिबेर शिव, खाति ज्यु हैं कनी।
घर जैबे जा तेरी रे, हैई जाली नानी॥ 
एके कैबे सबु कंणी दिनी दरशना।
क्वे मांगूछा भक्ति पूजा, कैकै अन धन॥ 
खाति ज्यु ऐगया खुशि खुशि हनें घरा।
बूड़िया कारण लागि, बहोते नखरा॥ 
तुमूलै उठे हनली, बड़ी मुसी पता।
क्यकों शिव जी लै म्यकै बतै दिय बाता॥

कतु पाछ कैलाश में ओ स्वामी ज्यु दुःख।
सनताना हैई जाली, पैजै पला सुख॥ 
तुमू घर आई देखि, हैगोछ हरसा।
नान तिन हल क्या हो, आघिन बरसा॥
खुट हाथ धोई वटि, खैलियों खांहणी।
तुमरि लैगेछी मिकै, भौते रण मणी॥ 
हैअया दुबवा यतु, लागि ख्वरा फटा।
तुमरा मुयावो गणी यण हैरी भंटा॥
खाति ज्यू का 
सोरी भगवान रांणी सब कनी भल।
भोलेनाथ बावा हैगी, हमूहैं सुफल॥
म्यर मुख मिठ कैहैं पका परसात।
नान तिन हल भागी आजैकी ये रात॥ 
आज रात तु नहैं जय सुण गोठ पना।
परावै की खुई बिछै सेरये निचना॥ 
य बिभुति धरी ल्हिये, अपण सिर्राण।
देखि लेलि कसा हनी, शिवा छम बांण ॥ 
कसि बात कंछा आज, क्य ह तुमू कंणी।
बका हछा नना जस, किलकि म्यकंणी॥ 
नन तिन हनी भागी, नौ मेहैंण बाद।
झुटि बलै तुमू लैंत, करि दिय हाद॥ 
तुमरी बात कैं स्वीमी, किलैं की टाऊल।
जस म्यहैं कर कला, मैं उसे करूला॥


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