जिया राँणि - कुमाऊँनी लोकगाथा (भाग-५)

 कुमाऊँ की लोकप्रिय लोकगाथा जिया राँणि पर आधारित खंडकाव्य Famous folk tale of Kumaun Katyuri "Jiya Rani"


कुमाऊँनी लोकगाथा-जिया राँणि 
(रचनाकार: अम्बादत्त उपाध्याय)

कत्यूरी रानी "जिया" के सम्बन्ध में कुमाऊँ में कई जन श्रुतियाँ प्रचलित हैं 
जिनमें "जिया राँणि" के नाम से उनके बारे में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।  
ऐतिहासिक रूप से उनके बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है 
पर इतना अवश्य है की वह कुमाऊँ की एक वीरांगना थी, 
जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने किशोर पुत्र के साथ 
कत्यूरी राज की बागडोर संभाली थी।  
उनका समय लगभग १४००-१४५० ई. के दौरान का माना जाता है, 
जिस समय भारत में तुग़लक़/सैयद/लोदी वंश का शासन रहा। 
 यहां पर हम  कत्यूरी "जिया राँणि" के जीवन पर केंद्रित खंड काव्य 
कत्यूरी "जिया राँणि" को प्रस्तुत कर रहे हैं।  
इस खंड काव्य की रचना श्री अम्बादत्त उपाध्याय जी द्वारा की गयी है 
जिनका संक्षित्प्त विवरण खंड काव्य के प्रारम्भ में दिया गया है।  
यह खंड काव्य कत्यूरी "जिया राँणि" के चरित्र के साथ ही 
कुमाऊँनी साहित्य की एक उत्तम रचना भी है।


कवि-
कणै डुबुकि मारि, कैं हल कमाल।
घ्वड़ों खूटु पारि कय, लपेटि रौ बाल॥ 
भौते मुसीपत चैवै घ्वड़ों खुट ख्वला।
बैश भै मुनिलों कणी, बड़े छिय बला॥
मुनिलों का आपस में 
भ्यार ऐवै कनी भाई, को हली य बान।
जैका लटूलैल हया, हम परेशान॥
य पहाड़ मजी भया, को नारी हनली।
यतु ठुल केश जैक उ कतुका भली॥ 
ददा भुला हिटो जोंल, उनिकै ख्वजणा।
कि ल्योल उनिकै कि पै हैजाल मरणा।। 
कवि-
वांबै घ्वड़ दौड़ लगै, बैश मुनिलों लै।
नजिका ऐगया सुण, कलाट जिय लै॥ 
आज कलू जस निछी, उपन शहर।
चौतरफी जंगला छी, बीचम गध्यर॥
अपा लिजी बनै रैछी, झ्वपड़ा झापड़ी।
घागर वां छोड़ि आई, पिछोड़ी पगड़ी॥ 
भाजिबै ऐ गई बाबु, जां कै रौछी ड्यर।
काव आई गोछ कैछ, जिया आज म्यर॥
जिया-
बचाओ बचाओ म्यरा, मैतु सबै झण।
जिया का आंखों में ऐगी, आँस मण मण॥

कवि-
उठि गया खेकदास पड़नी मन्तर।
हातम कटार लिनी, निसांगू महर।। 
मारि हल गुरू ज्यूल विभूति क फूका।
महसूल कटार मार, बनै दिय गुफा॥
पुजै दिय जिय कैं पै, गुफ़ा का भितेर।
मुनिला वां आई बति करनी अन्धेर।। 
सबुकै पगड़ि पैलि बांदि दिनी हात।
हमू हैंती कया कनी, सांचि सांचि बात।।
 मुनिलों का-
सैणि कोछा तुमु दगै, जैका ठुल बाल।
झुटि बकबास कला, कैद्युल हलाल॥
गुरू कोंनी तब यस मुनिलों हतणी।
तोरथ को हंणी हम ऐर्युं, सबै झणी।।
गुरू का मुनिलों से 
सैणियों के हमू मजि, क्वेता निल्यरया।
खालि मुली परेशान निकरो हो भया।।
कविः-
लौटि वटीं जाण लागा, वैजै कि मुनिला।
जिया मैतुओं का मुख फूल जसा खिला।। 
मन मनै कनी भली, बात कै गुरू लै।
बचि गया हम सब आपण भाग लै।। 
जों हैं जसै मुनिलों लै, पगड़ी छी बाटी।
कंणे साणी आँखी मजी पदि गेई माटी। 
पछिना मुड़ि बे चाय, लागि गे नजरा।
जियाक ध्म्यल देखी, गो गुफ़ा भित्यरा॥

काणे का-
ददा भुला सुणों कोछ, लौटिबै नजाओ।
इनरा बकाया मजी कसिकै न आओ। 
गुफा का भितेर मैंले, देखि है उ सैणी।
हिटा सबै हबै, घर लिजौंला तैकणी॥ 
कवि-
बैश घ्वड़ा लौटै लिनी मुनिला पछीना।
ठाड़ हवो गुरु कोंनी, गुफा का आघिना।।
गुरू-
जांण नि दिणा हमुल, यनुकै भितेर।
चाहे मरिबै है जोंल, एति सबै ढेर॥ 
कविः-
लड़ने लड़ने बाबु, नि पैसका पार।
मुनिला जियै के ल्यैगी, गुफा हैबे भ्यार॥
तंतर मंतर गुरू, सबै भुली जानी।
मति भरत हैजैं, नका दिना आनी॥ 
जिय दगै सबु कणि, पगड़ि लिगया।
बैश भै मुनिला अपा, घर पुजि गया॥ 
घर जैबै जिय हैंति, कनी यसी बात। 
त्वील रहणछा सुण हम लोगों सांत॥
मुनिला जिया से 
आज बै हैगेई देख तु हमरी राणि।
यतु बान हली हम, पैली गोछी जाणी॥
कविः-
मुनिलों वचन सुणि, उठिगो जहर।
कसि लागि कैछ आज, फट म्यरा ख्वर॥ 
जिया-
वैराठा में कत्युरों की, मैं छी ठूली राणी।
स्वामी ज्यू नाराज हया, हैगई निखाणी।

म्यर भागै लै मिकैणी कस य दिखाय।
मरों है मुनिलों उति, भाग यां लिआय॥ 
कवि-
मनमा धीरज धर पैजैकी अपण।
पति बरता धरमें कै मेंल ता बचाण॥ 
यनु हैति कहणी चै भलि बात अबा।
मुनिलों हैं कंण लागी जिया यस तबा॥ 
जिया-
म्यरा यों बचन सुणों तुम सबै झण।
मैंलै करो रौ अज्यला, एक य परण॥
मैंषै छाई निपड़ा जो, तेर साल तक।
विका बाद मिपार तुमर हल हक॥
पैलि एहै च बेचल, के तुम करला।
ठाट बाट बजी जाल, ए के कै मरला॥
कवि-
जियै बात सुणी चुप हैगया मुनिला।  
रूनें रूनें कैदि जिया, धीगडू कैगीला॥
जिया-
भगवानों बचै दिया मेरी लीजे कंणी।
पैजै यस कैछ गुरू खेकदास हंणी॥ 
गुरू ज्यू बताओ मैंल कांतक बचण।
दुनि मजी रंण हैगो, मिहंणी मरण॥
ए का बाद एक ऐछ मुसीबता बड़ी।
पांण हछा दुख म्यरा, मैतु में दगड़ी॥
गुरू-
धरण चैं जिया तिकै, मनमा धीरज।
तेरि स्यव करणी छा हमर फरज॥

घबरये झन एति, रहये सतमा।
त्यर लिजि दया आलि ईश्वरा दिलम॥
कवि-
मुनिलों का देश रनें कुछ दिना हया।
जिय च्यल मालसाई पैद हैगो भया॥
च्यलै की मुखड़ी देखी खुशी है मनमा।
पैजै की उठाय नान धरि है कोईमा॥ 
जिया-
सोर ऐगो म्यरा प्रभु पृथीपाल ज्यू क।
आज मैं वैराठ हन कतु पांन सुक॥
पैली पैली च्यल म्यर, रज खुशी हना।
यकलै निरन आज मैं य गोठ पना॥
खुशी फैली जानी सारे वैराठ राजमा।
गरीब गुरुबों कंणी बाटना इनामा॥
म्यरा भागलै दिखाय, मिकणी य कस।
ए के दिनै कैं चितै छ, एक साल जस॥ 
कवि-
एक साल बिती गोय, दुसर लैगोय।
थुगु थुगुं कनें नान हिटण भैगोय॥ 
दस बार साल बिता, हैई गोय ज्वान।
यस कौछ जियै हैती, सुणौ भगवान॥ 
मालसाई-
ईजा ईजा बता मिकैं सांचि-२ बात।
कति का रंणिया हम, कति मेरी थात॥
एति हम कसि आय क्य कारण छिय।
बौज्यू ल त्यकंणी ईजा, किलैं छोड़ि दिय॥

बद्यल मैं लिहैं जानू, आज्ञा दे म्यकैणी।
यतु तकलीफ दि दी किले की तिकणी॥
जिया-
मैं खै देली म्यर बबा तेरी य सनका।
त्यरा बौज्यू राज पाठ बैराठ मुलका॥ 
क्य कसूर बतों च्यल, यमजी उनरा।
बिपतुबा भाग रय लग ताबैं म्यर॥ 
तीस्थों में ऐगोय मैं, अपणा मनेले।
त्यकैं पाय खेकदास, गुरु किर पैलै॥ 
मैंपुरिमा एक दिना एँ गोया मुनीला।
गुफा बनों हैंणी काटि महरू लै शिला॥ 
उभितेर पुजै दिय, पैजै कि म्यकंणी। 
अपणो विपत लगों कांतक त्यकंणी॥
म्यकै मुनिलों लै तब लैकि देखि लिय।
हम सबू कैं ओ च्यला बन्दि बनें दिय॥
आजि क्य द्यखाछ भाग, जाणो कस कस।
पैजै खेकदास हैंती कंण लागी यस॥
तेर साल हंण चानी हमू कैं या पुर।
ख्वजण निअया किलै हमू कैं कत्यूर॥
एति बे जहणों करो के तुम उपाई।
नतर जरूर जांणा मैंल ज्योने जई॥
कत्यूरों लै बचन दिरौ, तुमु कैं ऊ दिना।
सबूं कैहैं एति बुलैं किलकी निलीना॥

कवि-
जिया का बचन सुणी गुरु उठा ठाड़।
टकाईया विजेसार तबा मुंक गाड़॥  
यतु दिना बीताकई कैं निआई के होस।
मुसीबता उआणी छी कैंपरि क्य दोस॥ 
बाज बिंजेसार बाबू न्हैगेई आवाज।
बैराठ में कत्युरों की पड़ी भाजा भाज॥ 
ढोलै की रणका पुजि कमवा धमवा।
कैल भनाकूना फ़्वड़ा कैल कठपवा॥ 
स्वैण मजि गुरु पूजा खिम सारि हाट।
गुरु कैं औसांण देखि लागि गो औचाट॥ 
हमरा गुरु ज्यु कैं य क्य विपता आई।
किलै बिजेसार बाज क्य कवा हैगई॥ 
जगों जगों बे कत्युर जम हैई गया।
जै जिया जै गुरु कनें मुनिलों वां अया॥ 
गुरु आज्ञा लिबे कैदि मुनिलों चौपटा।
जियै कैं वापस ल्यया रंगीली बैराठा॥
माँ च्यलै लै हात ज्वड़ा पृथीपाल छैणी।
मेरि य अरज स्वामी तुम लियो सुणीं॥
जिया पृथीपाल से 
य तुमर नान च्यल मालसाई नाम।
पाय मैं लै जब कय तिरथा व धाम॥

भौतै विपत उठाई यकैं सैतणमा।
जग दियो कथै यकै अपण राजमा॥ 
बचि बे ऐगोयु आजि मैं अपण घर।
यतु साल बिता मेरि के मिली खबर॥ 
दिन रात रून काटा चौद साल मैं लै।
बिलकुल त्यागि दिय मिकणी तुम लैं॥ 
पैलि जस सत मिमै आजि तक हय।
खुटी पड़ी बें जियै लै रजे हैती कय॥ 
पृथीपाल-
जियै बात सुणी कोनी राजा पृथीपाल।
किलकी दिलाण मेंछै तिरिय की चाल॥  
तेर साल तक रैबे, मुनिलों का घर।
एति ऐबे दिखाँ हैछै, म्पकणी नखर॥ 
सत जै तिमजी हन, य च्यल नी हन।
बिना बियें माट मजी, डाव निजामन॥ 
कान खोलि सुणी लिया, मेरी बातों कंणी।
क्वै जग नैहैंति एति, तुम द्विनू हंणी॥ 
मां च्यला कै लियो यांबे, आपण कामुख।
तिकैं ज्योंनि देखि हैगो, मिकैं भारी दुख॥ 
लगैं दिय त्वील म्यर, कुल मजि दाग।
नाख काटि गोय लागिगो दिलम आग॥ 
दसों का बीचम मेरी उड़ि गेई लाज।
जैक छा य च्यल करा विका घर राज॥

जिया 
हैई जाल अनरथ, यस ना बुलाओ।
अपणा मुखैल मेरी, हैंसि ना उड़ाओ।। 
पड़णा मैं निदि कैकी, अपू मजि छाई।
तुमरा बचना सुणि, कलजा गो जई॥ 
करण चैं रजै कणी, भल इनसाफ।
अन्याय कहजा हैलि, परजा खिलाफ॥
पतिबरता सैणी पारि, कलंक लगला।
सिरी भगवाना तुमु, हांणि रूठि जैला॥ 
तुमरा नौं पारि मैल, बादीछी आस।
पतिवर्ता धरम को, झन कया नास॥ 
मेदगे तुमूल आज, अन्याय कण।
क्वे सैंणिल पतिवर्ता, पहाड़ निहंण॥
य बातक कौ पाप देखो, तुमुकें लागल।
अजमेस कबो मेरि, ज्य लागुछ भल॥ 
आग में मैं भैटि जोंल, तुम कला जब।
राजा पृथीपाल जियै, हैति कनी तब॥ 
पृथीपाल--
म्यकैंणि मालूम तिमें, जतु गुण हैंला।
कुमाऊँ का मैष देख, म्यहोंणि क्यकैंला॥ 
दूसरा वां जाई सैणि, भाजि धरि हैछा।
बदना में देखि मिकैं, डर लागै मैछा॥

त्यर पाप सामणि में, जाहिर है रौछा।
तेर साल नान जो य, तेदगै ऐरौछ॥ 
यकैणी बतांण मेंछै, तु अपण च्यल।
पृथीपालैं सनतान, को इहैंति कल॥ 
मनमा तसली हलि, कैले अजमेस।
त्यर बिसवास कैला, कुमाऊँ का मेस॥
पतिवर्ता धर्म त्यर, देखि जाल आज।
मालसाई कैं मैं धुल, वैराठ का राज॥ 
जो हुकम मैं बतोंल, उकैं कलि पूर।
तब जै मानिला रज, यकंणी कत्यूर॥ 
जिया-
मिकैं मनजूर छा जो, तुमर हुकमा।
पछिना निरहों द्वियै, मां च्यहला हम॥ 
पृथीपाल-
हुकम दीदिनीं तन, कत्यूरों का रज ।
य ननै कैं ठाड़ कओ, बीच सभा मज॥ 
चिमटा फौडू कैं अब, ततै बति लाल।
स्यूं’जा गरजणा लागा, राजा पृथीपाल॥
पैजै मालसाई कंणी, जवाओ यनुले।
यसा छा हुकमा म्यर मानण तुमुलै॥ 
य सरत नैहैं मां च्यला, कैं मनजूर।
म्यरा राजें हैबे कओ, यनू कणि दूर॥


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