कोरोना और नौकरी


कोरोना और नौकरी

रचियता: राजेंद्र सिंह भंडारी

यौ कोरोना कारण मेरि, नौकरी छुटी गे.
आब मीं कथां मरुँ, मेरि खोरी फूटी गे।
ईज बाज्यू म्यारा कोंछी, कोंछी म्यरी आमा,
तू भलिकै पडाई करिले, फिर तापिये घामा।
बचपनकि उमर पहाणा, अकल नीं हौनीं,
निकलि जें उमर तब, अकलदाड़ औनीं।
मीं यौ कसिक कौनूं, किस्मत रूठी गे,
आब मीं कथां मरुँ, मेरि खोरी फूटी गे।
यौ कोरोना कारण मेरि, नौकरी छुटी गे।।

सरकारी नौकरी होनीं, पड़ी लेखी भेरा,
समझ में मेरि यौ बात, ऐछौ भौत देरा।
ठुल बाज्युक च्यल शेरुआ, भौते हरिं मौजा,
पड़ी लेखिभे ऊ लगोछौ, भारतीय फौजा।
नन्तिनोकों आब शेरुआ, भलि करों पड़ाई,
म्यार सबै काम ईजा, करण छन बकाई।
सांस ले नीं औनीं, मेरि दम घुटी गे,
आब मीं कथां मरुँ, मेरि खोरी फूटी गे।
यौ कोरोना कारण मेरि, नौकरी छुटी गे।।

चार साल छ्वट भुलु, नौकर सरकारी,
जिल्ल अलमाड़ में उ, बनगो अधिकारी।
दिन भरि नौकरी करों, ब्याव ल्योंछ सागा,
पांच बाजि छुट्टी हजें, सांख्यिकी विभागा।
ब्वारी मेरी अलमाड़ में, टयूसन करेंछौ,
आपण मकान उनर, राणी जसि रैन्छौ।
मिकड़ी घरवाई मिली, यौ नौ खुटी गे,
आब मीं कथां मरुँ, मेरि खोरी फूटी गे।
यौ कोरोना कारण मेरि, नौकरी छुटी गे।।

दिल्ली जभे शुरू करी, मीं छोटी नौकरी,
बस मीं एक लौंड हयौ, सब हया छोकरी।
कटी भेर मिली जन्छी, हाथ दस हजारा
किश्मत कि बात अगोछौ, कोरोना बुखारा।
द्वी भाई मालिक आब, खुद हगिन न्यारा,
नौकर जतुक ले छी, सब निकाली भ्यारा।
कसिक पालूं नान्तिनाँ कें, कमर टूटी गे
आब मीं कथां मरुँ, मेरि खोरी फूटी गे।
यौ कोरोना कारण मेरि, नौकरी छुटी गे।।

शहर में अनपड़ ले भौत, लाखों में खेलनी,
नीं हौना पड़ी लेखिया, स्वैण ऊँ देखनी।
उनर घर जभेर देखो, कास हरीन ठाटा,
दूध मलाई छू हाथम, बैठी रयिं खाटा।
किश्मत कि लेख हई, विधि कौ विधाना,
बात करण में लागनी, जसा क्वे विद्वाना।
मेरि नसीब कि रेखा, कसी अखुटी गे,
आब मीं कथां मरुँ, मेरि खोरी फुटी गे।
यौ कोरोना कारण मेरि, नौकरी छुटी गे।।

राजेंद्र सिंह भंडारी, 01-10-2020
फोटो सोर्स: गूगल 

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