
लाट् लोगूंकि लाटि बात
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रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक
सन् 60/62 कि बात छू
कतू लाट् (सिद्) हुनेर् भ्या पुराण लोग
चार दिनैंकि जात्रा पर न्है गे एक सैंणि
पाँचू दिन घर ऐबेर्
पंडिज्यु कैं बलैबेर्
पुजी गया द्याप्त कूंछा
यौ लै भै एक रीत
जात्रा बटि लौटणाक् बाद
द्याप्त पुजण जरूरी भै
पुज खतम है त्, चहा बणै है
पंडिज्यु ! खाल्लि चहा क्ये पिंछा
यौ ल्यओ बिस्कुट
ब्रैडक् पाकिट खोलि चार
सुकी कड़-कड़ ब्रैडपीस
धरि दि पंडिज्यु आघिल्
कूंण फैगे, मिल् त् इनूं पारै करो गुजार
कैक् हातक् खांण नि होय
हिटाई लै हम खानेर् नि भय्
जानि तक दुकान बटी
धरि ल्ही गऊ चार पाकिट
लूंण पिसि ल्हिजै रौछी घर बटि
वी दगड़ै खाई मिल
एक पाकिट बचि गो कूंछा
तुमर् भागक् लै हुनौल् हो पंडिज्यु
खाओ खाओ किलै शरमांछा
य त् भट्टि में पकाई भौय
मिठै जस् यौ लै होय।
🌿🌿⚘🌿🌿⚘🌿🌿हीरावल्लभ पाठक (निर्मल)
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर, रामनगर

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