
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
बात 'कि ले बात
हुनेर भै बल
एक ....
" तिसौर "
कान ले हुँछ।
..........
झिट घड़ी ले
भरौस नि भै ....
मनखी
भोल' की ईई
चिन्ता में
मर ।
................
कुर्सी
याद करीं जैं
मनखिन जै
जो पुछौं ।
...... ....
चौमासन में .....
को पुछण लागि रौ
तु
" रुढ़िन " में ले
बरसी कर।
...............
बेमान
जिन्दगी में
मनखी ईमानदार ....
कसिक होल- कै - हरौछा।
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मंगल - छंजर त
सुँणी भै
आज 'क इत्वार
मित ज्यू'क छ बल।
...............
एक दिन
स्यैंणिल बतायि
बुड़ी गोछा
"सीप"
आजि ले नि आय ....
साँच्ची!
मैं
के~कूँण नि आय।
.................
हला ~~~
नि कयी करौ
हाय ! करी करौ.....
पत्त न
स्यैंणिक ख्वार
के बजर पड़ौ।
..............
मेरि पड़ौस्सी
लिपि - घोसी
थोव में लाली
ख्वार में डाई
जींस में लागैं
गूड़ैकि पायि
ब्यान जै मर्रि रै
फिर ले अतैरि रै
फेसियल करै बेरि
सुरि - सुरि है रै ...
जै देखि बेरी
"स्नो - वैसलीन"
स्यैंणि ले आज
" पार्लर" जै रै।
शब्दार्थ:
तिसौर - तीसरा,
झिट घड़ी ले - थोड़ी देर का भी,
रूढ़िन - गरमी में
August04, 06 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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